Tuesday, 21 April 2020

आर.बी.आई. की राहत पैकेज, क्या पात्रों को लाभ देगा? पराग सिंहल

अर्थव्यवस्था को संभालने और सुचारु रुप से चलाने के लिए सरकार की अपनी नीतियां है परन्तु एक समझ से परे हैं कि क्या किसी देश की अर्थव्यवस्था इस नीति पर टीकी होती है कि जो देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में सहयोग देता हो उसके लिए केवल नियम और कायदे का झुनझुना!!
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शशिकांत दास ने भारत की अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने के लिए, छोटे उद्योगों व रोजगार बढ़ाने के लिए बूस्टर डोज दिया। इस डोज के लिए रिवर्स रैपो रेट का घटाया, इस बूस्टर डोज के अन्तर्गत देश की तीन शीर्ष वित्तीय संस्थानों को 50 हजार करोड़ के साथ ही ‘बाजार में नगदी प्रवाह’ बनाये रखने के एक लाख करोड़ रुपये की व्यवस्था कर दी।
जब से होश संभाला है तभी से प्रत्येक दल की सरकार यह कत्र्तव्य समझती है कि देश के किसान, गरीब जनता को प्रत्येक तरह से सहायता हेतु योजनाओं का निर्माण कर उनको क्रियान्वयन करे ताकि किसान और गरीब वर्ग खुशहाल हो सके। तो मेरा प्रश्न है कि देश की आजादी के 70 साल बाद आज भी किसान और गरीब को सहायता की जरुरत क्यों पड़ रही है। क्या उन योजनाओं में कोई दोष था अथवा वह सही ढंग से क्रियान्वन नहीं हुआ। आज तक किसी भी दल की सरकार ने ऐसे वर्ग के बारे में नहीं सोचा जो सरकार को राजस्व के रुप में टैक्स का भुगतान करता आ रहा है क्या वह वर्ग देश का दोयम दर्जे का नागरिक है? क्या ऐसा कमाऊ पूत किसी ऐसी प्रोत्साहन को पाने का अधिकारी नहीं है? अभी लाॅकउडान लगते ही सरकार ने 1.70 लाख करोड़ का राहत पैकेज लागू कर किसान, गरीब जनता के लिए खजाना खोल दिया, इस पर यही आवाज सुनायी पड़ रही है कि मोदी ने महिने के 500 रुपये ही दिये हैं कम से कम 5000 तो देता! यह लाभ मिला है राहत पैकेज का? जबकि अनेक व्यापारिक संगठन सरकार ने करदाताओं के हित में राहत के स्थान पर प्रोत्साहन पैकेज की मांग कर रहे हैं तो सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है? बस भारतीय रिजर्व बैंक ने तीन वित्तीय संस्थाओं जिनमें नाबार्ड, सिडबी और नेशनल हाउसिंग बैंक को 50 हजार करोड़ रुपये का पैकेज घोषितकर दिया। और अपने कत्र्तव्य की इतिश्री मान ली। लेकिन कभी सरकार ने यह अध्ययन करने का प्रयास किया कि अन तीनों संस्थाओं के माध्यम से देश के पात्र ;करदातद्ध वर्ग को कितना लाभ प्राप्त हो रहा है।
हमने सरकार से सीधे पात्रों करादाताआंे को प्रोत्साहन के रुप में कर्ज उपलब्ध कराने के लिए बार-बार ई-मेल के माध्यम से सुझाव देते हुए अनुरोध किया और कहा कि करदाताओं को प्रोत्साहन पैकेज देने से सरकार कोरोना महामारी से बचाव हेतु खर्च भारी-भरकम राशि को वापस वसूलने का सुगम रास्ता होगा लेकिन संभवतः सरकार ऐसे वर्ग को प्राथमिकता पर नहीं रखती है बल्कि इस श्रेणी से आशा रखती है कि यह वर्ग केवल अपने कत्र्तव्यों को निर्बाह करें और सरकारी आदेशों का राजज्ञा मानकर पालना करें। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने उद्बोधन में जो आव्ह्ान किया कि अपने कर्मचारियों के प्रति संवेदनशील रहे और उनको 3 माह का वेतन देते रहे।
क्या प्रधानमंत्री जी, मुख्यमंत्री जी और राजस्व विभाग के साथ नीति आयोग व भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्निग टीम ने इसका अध्ययन करने का प्रयास नहीं किया कि 25 मार्च से लाॅकडाउन खुलने तक देश का व्यापारी कहां से वेतन देने के लिए धन लाये। केवल भावनात्मक आदेश कर देने से काम हो जाएगा? क्या देश की सरकार ने भारतीय के प्रति  गंभीर सोच रखते हुए यह अध्ययन किया कि देश भारी उद्योगों के साथ निर्यातकों की स्थिति अगले 2 वर्षो तक क्या होगी? 
भारतीय रिजर्व बैंक ने जिन वित्तीय संस्थाआंे जिनमें नाबार्ड और सिडबी जैसी व्यवस्थाएं अब निरर्थक ही कही जानी चाहिए। क्यांेकि आपको बताना जरुरी है कि अंग्रेजी शासन के समय से ही कृषि क्षेत्र का विकास और कृषि उत्पादों के साथ कृषकों की भागीदारी के साथ देश में ‘सहकारी आन्दोलन’ के तहत जिला स्तर पर ‘जिला सहकारी बैंकों लिमिटेड’ को स्थापित कर कृषि साधन समिति लिमिटेड के माध्यम से विभिन्न प्रकार के कृषि लोन उपलब्ध कराये जाने लगे लेकिन आगे चलकर यह जिला स्तर पर संचालित जिला सहकारी बैंक प्रणाली भारी घाटे के साथ बुरी तरह फेल साबित हुई और कहीं- कहीं सफेद हाथी भी बन गये और राजनीति के केन्द्र भी। स्थिति यहां तक आ गई थी कि जिला सहकारी बैंक, नेशनल बैंकों के साथ काम नहीं कर पा रही थी, जैसे क्लयरिंग आदि कार्य से बहुत बाद में जुड़ पायी। यह सर्वविदित है कि नाबार्ड किसानों को लोन सहकारी बैंकों के माध्यम से कर्ज उपलब्ध कराते हैं तो बांटा जाने वाले कर्ज की वसूली कितने प्रतिशत होती है,  
ऐसे ही सिडबी बैंक भी है जो कि पात्र करदाता से सीधे जुड़ा हुआ नहीं है बल्कि बैकिंग माध्यम से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने का कार्य करता है, यहां पर सवाल यह उठता है कि यह तीनों संस्थानें क्या लाभार्थी को सीधे तौर पर कर्ज उपलब्ध कराते हैं अथवा किसी बैंकिंग संस्थानों के माध्यम से? अध्ययन इस पर होना चाहिए कि पहले भी यह तीनों संस्थानों को कृषि विकास के साथ औद्योगिक विकास के लिए कर्ज उपलब्ध कराते आ रहे हैं, ऐसे ही सिडबी कोई बैंक नहीं जो लाभार्थी को सीधे लोन उपलब्ध कराये बल्कि बैकिंग सेक्टर से कराती है। इसी क्रम में नेशनल हाउसिंग बैंक की भी यही स्थिति कही जा सकती है? तो ऐसे में प्रश्न उठता है कि ऐसी स्थिति में लाभार्थी को कितना लाभ पहंुच सकता है। तो फिर वहीं यक्ष प्रश्न कि देश की बैंकों द्वारा ऐसे कितने पात्र है पात्रों को सीधे लाभ प्राप्त होगा? 
हमारा यहां पर पुनः कहना है कि देश में लागू अप्रत्यक्ष कर प्रणाली ;जी.एस.टी.द्ध इतनी सशक्त माध्यम से जिससे सीधे लाभार्थी जुड़ा है, को इस प्रणाली के माध्यम से सीधे करदाता को लाभ पहंुचा सकती है। सरकार का प्रयास है कि लाॅकडाउन के बाजार में नगदी प्रवाह में कमी न रहे, तो एसएमई सेक्टर यानि मध्यम श्रेणी के करदाता, जो कि वास्तव में लाॅकडाउन के कारण फिलहाल और खुलने के बाद परेशानी होगा। इस पर गौर करते हुए सरकार को नई नीति का निर्माण करना चाहिए।
अतः हमारा मानना है कि केन्द्र सरकार को नीति में नयी सोच के साथ देश को उभारने के लिए और राजकोषीय घाटे को कम करने के साथ बाजार में धन उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सार्थक पहल करे और पात्र लाभार्थियों को लाभ पहंुचाने का काम करें।
अंत में मैं अवश्य ही कहना चाहूंगा, लाॅकडाउन खुलने के बाद भारत मंे स्थानीय बाजार की स्थिति बहुत ही दयनीय रहेगी, उद्योग, व्यापार और निर्यात के क्षेत्र में भारी गिरावट होगी, हो सकता है आर्थिक अराजकता की स्थिति भी आ जाए, क्योंकि सरकार ने केवल कोरोना लाकडाउन ने 1.7 लाख करोड़ का पैकेज देकर खर्च ही किया है, जिसको सरकार बाजार खुलने के बाद ऐसे सरकारी खर्च की भरपायी करने और राजकोषीय घाटा पूरा करने के व्यापारी वर्ग पर शिकंजा कसेगी। लेकिन यह निश्चित होता जा रहा है कि सरकार ऐसे खर्च में विश्वास नहीं करती जो सरकार राहत के साथ आय का साधन बना सकेA                                                                                                                    पराग सिंहल, प्रबंध संपादक
कर जानकारी (टैक्स पत्रिका)


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