सिद्धार्थ नगर। लाखों की तादात वाली गरीब जनता के नाम पर व्यवस्था कसी जाती है,उन लाखों बल्कि पूरे देश मे करोड़ों का पेट भरने वाले रसोई में पके भोजन और कच्चे राशन की आपूर्ति,अन्य जरूरी आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है,वह प्रशासन ही है।आपदा राहत का विभाग अलग नहीं होता।राजस्व विभाग ही है जिसमे सर्वाधिक दायित्व फील्ड स्तर पर तहसीलदार और तहसील टीम का ही होता है।आज जिला और तहसील प्रशासन की चर्चा न् के बराबर है लेकिन पिछले सवा महीने से यह तंत्र मशीन की तरह अपने संसाधनों और स्वयमसेवी संगठनों से प्राप्त सहयोग को समेकित कर गली गली घर घर जाकर पके भोजन,कच्चे राशन और दवाओं यहां तक कि ज़रूरत पर अपनी जेब से पैसे भी मुहैया करवा रहा है।इनकी ही तरह लोकल बॉडीज, प्राधिकरणों की मशीनरी भी जूझ रही है।आपूर्ति,पशुपालन समेत कई सिविल विभाग के लोग लगे हैं लेकिन जिला और तहसील प्रशासन की ड्यूटी का कोई समय और शिफ्ट नहीं।मोबाइल पर कॉल आते ही लोकेशन कन्फर्म करी और टीम रवानाजो कॉल सेंटर खोले गए हैं उनमें ज्यादातर तहसीलदारों के सीयूजी नम्बर हैं।लखनऊ में ही तहसीलदार सदर का मोबाइल बजता ही रहता है।80 प्रतिशत जनता के फोन,20 प्रतिशत सरकारी,जो प्रतिदिन आंकड़े और सूचनाओं के लिए किए जाते हैं।सब ऑनलाइन भरना,भेजना है। सिद्धार्थ नगर के डुमरियागंज और बांसी के एसडीएम अपने सोने के समय में कटौती करके जनता के साथ खड़े नजर आ रहे हैं।जनता में भी कई लोग ठेकेदारी करने लगे हैं"जरा 50 पैकेट खाना भेज दीजिए,मेरे प्लाट के बगल में गरीब मज़दूर हैं,भूखे हैं।जाने पर पता चलता है कच्चा राशन पाए हैं।कोई ज़रूरत नहीं है।लेकिन पड़ोसी बड़े आदमी हैं सो दया उमड़ पड़ी।नोएडा से एक साथी बता रहे थे कि लोग सुबह 6 बजे ही फोन कर कम्युनिटी किचेन से खाना भेजने की बात करते हैं।कभी कभी फोन आता है कि 2 घण्टे पहले खाना बुक कराया था अभी तक आया नहीं।विश्वास नहीं होगा आपको लेकिन सच है,प्रशासन स्वीगी और जोमैटो की तरह पका भोजन उपलब्ध करा रहा है।लाक डाउन में लेबर की समस्या, हर इलाके में सरकारी जीप से भोजन नहीं पहुंचा सकते तो कर्मचारी निजी वाहनों में भर कर आपूर्ति कर रहे।हर चीज़ का बजट नहीं होता,जो सिस्टम में हैं वो जानते हैं।15 रु मासिक साईकल भत्ता पाने वाला कार्मिक भी अपना पेट्रोल जला कर जूझ रहा।कोरोना से प्रभावित होने का खतरा भी है।पुलिस बैरियर पर अपनी पहचान,ड्यूटी कार्ड और कारण भी छोटे कर्मचारियों को बताना पड़ता है।दोनों वक्त का भोजन पहुंचा पाना दो चार दिन तो आसान है मगर महीने डेढ़ महीने थोड़ा दुष्कर। पीडीएस के अंतर्गत गांव गांव राशन वितरण और उसकी मोनिटरिंग।बैरियर पर ड्यूटी भी चल रही है।कहीं क्वारंटाइन सेंटर चल रहे तो कहीं शेल्टर हाउस।कहीं मेडिकल टीम के साथ जांच में जाना है कहीं पुलिस के साथ व्यवस्था भी स्थापित करनी है।आपदा राहत दैनन्दिन कार्य नहीं है,कभी कभी वाला है।किंतु वर्तमान विकट परिस्थिति में यह दैनन्दिन कार्य हो गया है।जिलों के कंट्रोल रूम में 24 घण्टे काम हो रहा।शासन की मीटिंग के आंकड़े चाहे वह जिस विभाग के हों,उनको तैयार कर अंतिम रूप देना किसी महामारी से जूझने से कम नहीं।ये लोग लौट कर रेस्ट हाउस,गेस्ट हाउस नहीं बल्कि अपने परिवार के बीच ही जाते हैं।और ये काम हर प्रदेश,हर प्रदेश के हर जिले, हर जिले की प्रत्येक तहसील,तालुका,अनुमंडल में चल रहा है।
उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा प्रदेश है तो जाहिर सी बात है कि सबसे बड़ी वितरण और आपूर्ति प्रणाली यहीं संचालित है।जितना कई राज्यों में एक जिले की आबादी है,उससे ज्यादा आबादी की यहां कई तहसीलें हैं।सोचिए उतना ही ज्यादा काम का दबाव भी।कहीं बवाल हो तो कानून व्यवस्था संभालने भी भागिए।जनता इस दौर में किसी और के समझाए समझती भी नहीं।
अब पुलिस के पास वर्दी है,मेडिकल पैरामेडिकल के पास एप्रन और सफाई कर्मी वर्दी,झाड़ू ,सैनिटाइजर, मास्क लिए हैं तो दीखता है। प्रशासन तो दीखता नहीं।लेकिन है।बखूबी,वह भी इस युद्ध में जूझ रहा है शिद्दत से,और अपने लिए नहीं लोगों के लिए।
हिन्दी दैनिक उमेश वाणी समाचार पत्र(सिद्धार्थ नगर उत्तर प्रदेश)
Monday, 27 April 2020
भीषण आपदा में चट्टान की तरह खड़ा राजस्व विभाग, जिले में चल रहा है युद्ध स्तर पर कार्य
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