Sunday, 12 April 2020

कोरोना बचाव में बाधक नहीं भाषा

कोरोना से बचाव हेतु सरकार,अनेक संस्थाए व व्यक्तिगत स्तर पर भी योगदान किया जा रहा है। अपनी अपनी क्षमता के अनुरूप लोग इसमें सहभागी बन रहे है। लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर कविता रस्तोगी ने भी इसमें नया अध्याय जोड़ा है। उनका उद्देश्य कोरोना से बचाव की जानकारी आमजन तक पहुंचाना है। लखनऊ विश्वविद्यालय की मुहिम में आज भाषा विज्ञान विभाग की एक प्राध्यापिका ने एक कदम और बढ़ाया है। प्रो कविता रस्तोगी ने  सोसाइटी फ़ॉर एंडेन्जेर्ड एंड लैसर नोन लैंग्वेजेज की टीम के साथ मिलकर भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा दिये गए कोरोना वायरस से बचने के उपाय व अन्य सूचना उत्तरी और उत्तर पूर्वी भारत के उनतीस क्षेत्रीय और लुप्तप्राय भाषाओं में अनुवादित किया है। यह भाषाएँ उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, असम और मेघालय के विभिन्न प्रान्तों में बोली जाति है। प्रो रस्तोगी ने बताया कि क्षेत्रीय और लुप्तप्राय भाषा बोलने वाले समुदाय के लोगो को कोरोना के विषय में उन्ही की भाषा मे सूचना पहुँचाना अति आवश्यक है। क्योंकि यह समस्या बहुत ही ज्यादा गंभीर है और इसके खिलाफ सबसे बड़ा हथियार इन्फॉर्मेशन ही है। प्रो रस्तोगी अवधि, भोजपुरी, कुमाऊनी, गढ़वाली आदि भाषाओं के समुदायों के साथ काम करने वाले लोगो से संपर्क में हैं और इस कोशिश में कार्यरत है कि कितनी जल्दी इन सभी समुदायों के लोगों तक कोरोना से लड़ने और बचने के विषय मे सूचना पहुंचाई जा सके। प्रो रस्तोगी ने यह भी बताया कि जब कि उनतीस भाषाओं में काम पूरा हो चुका है, पूर्वोत्तर और पश्चिमी भारत की क्षेत्रीय भाषाओं पर काम अभी वे और उनकी टीम कर रही है। साथ ही प्रो रस्तोगी ने बताया कि इन सभी भाषाओँ में वे छोटे छोटे वीडियो भी तैयार कर रही है ताकि व्हात्सप्प जैसे माध्यम से कोरोना से सुरक्षित रहने की जानकारी जल्दी और आसानी से लोगो में फैलाई जा सके।


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