Friday, 17 April 2020

क्या व्यापारी देश का नागरिक नहीं?

मैंने एक लेख लिखा था कि आजादी के बाद हमारे देश की अर्थव्यवस्था ‘समाजवादी पूंजीवादी अर्थव्यवस्था’ बन गई जिसमें समाजवाद भी झलकता था लेकिन पंूजीवाद अधिक था। लेकिन अब हमारे देश की अर्थव्यवस्था ‘सब्सडरी’ या ‘राहत पैकेज’ आधारित होती जा रही है। 
गत माह हमारा देश कोरोना संक्रमण महामारी से प्रभावित हो गया। और हमारी सरकार ने महामारी से बचाव हेतु सोशन डिस्टेसिंग लागू करते हुए जनता की सुरक्षा के लिए लाॅकडाउन लागू कर दिया। लाॅकडाउन के दौरान सरकार ने देश के गरीब वर्ग के लिए यह माना कि ‘यह वर्ग रोज कमाते हंै और रोज खाते हैं’ इसलिए सरकार ने उनके लिए देश का भंडार खोल दिया। इतना ही नहीं माननीश् प्रधानमंत्री की अपील पर देश के धनी वर्ग ने ऐसे गरीब और असहाय जनता के लिए जगह-जगह भंडारे लगा दिये। 
लेकिन प्रश्न यह उठता है कि कभी सरकार ने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि देश की केवल गरीब वर्ग ही नहीं बल्कि अन्य मध्यम वर्ग भी देश में रहता है। गत वर्ष मोदी सरकार ने अर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करते हुए 7 लाख रुपये की आय वाले लोगों को इस आर्थिक आरक्षण् की श्रेणी में शामिल करते हुए आरक्ष्ण का लाभ दिया। तो ऐसा व्यवस्था में प्रश्न उठता है कि हमारे देश में क्या केवल लाॅकडाउन के दौरान गरीब जनता का राहत प्राप्त करने की अधिकारी है। जब सरकार ने एक आर्थिक आधार की सीमा निर्धारित कर दी है तो क्या आर्थिक आधार पर आरक्षण का लाभ प्राप्त करने वाले वर्ग को लाॅकडाउन के समय राहत पैकेज नहीं मिलना चाहिए?              सरकार ने यह भी आदेश दिये कि लाॅकडाउन के दौरान सभी व्यापारी अपने कर्मचारियों को वेतन आदि का भुगतान करते रहेंगे, जिसकी रिपोर्ट प्रशासन ने मांग ली, अन्यथा कड़ी कार्यवाही की चेतावनी भी दी। 
तो फिर वही प्रश्न कि ऐसे आरक्षण प्राप्त वर्ग के प्रति क्या उसके प्रति सरकार संवेदनशील है? संकट के समय पर सरकार उसके साथ खड़ी है या नहीं?आज जब देश में कोरोना संक्रमण महामारी को देखते हुए सरकार ने पूरी तरह से लाॅकडाउन लागू कर दिया तो ऐसे समय में सरकार ऐसे आरक्षण प्राप्त वर्ग के साथ खड़ी हुई? क्या सरकार का छोटे करदाता के प्रति कोई दायित्व नहीं बनता जो समय से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष टैक्स जमा कर अपना राष्ट्रीय दायित्व को निभाते आ रहे हैं? 
मैंने अपनों विभिन्न लेखों में सरकार से यही कहा कि यदि सरकार यह न माने कि जो टैक्स जमा कर रहा है वह समर्थ है, उसके घर पर कोई परेशानी नहीं है, बल्कि उनके प्रति भी संवदेनशील होकर ऐसे वर्ग को प्रोत्साहित करे। निश्चित रुप से टैक्स जमा करने वाली जनता स्वयं ही राजस्व के रुप में जो टैक्स जमा करने के लिए उत्साहित होकर आगे आएगी, और सरकार के राजस्व में वृ(ि ही होगी। अतः करदाता को भी प्रोत्साहित करना चाहिए। ऐसे वर्ग के लिए भी सरकार को संवेदनशील होना चाहिए।
माननीय प्रधानमंत्री जी आज के अपने संबोधन मंे करदाता वर्ग से भी यही संदेश दिया कि वह अपने कर्मचारियों को कोई परेशानी न होने दें लेकिन यह वर्ग अपनी परेशानी किससे कहें और कैसे इस परेशानी से निपटे? यह नहीं बताया।
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि देश का व्यापारी ने हमेशा से ही देश के विकास में योगदान देता आया है लेकिन किसी भी दल की किसी भी सरकार ने कभी भी संकट के समय व्यापारियों के लिए कभी मदद का हाथ नहीं बढ़ाया है, जबकि अन्य प्रत्येक वर्ग के लिए सरकार के पास खजाना भरा हुआ है। क्यों? 25 मार्च से देशभर में लाॅकडाउन लागू कर दिया लेकिन सरकार ने व्यापारियों के लिए कोई राहत की नहीं सोची। हां, अतना अवश्य किया है कि प्रत्येक वर्ग को राहत देने के लिए व्यापारियों का उत्पीड़न करने में कभी संकोच नहीं किया। आप याद कर सकते हैं कि दीपावली के आसपास और जनवरी माह से व्यापारियों के लिए यहां आयकर के सर्च एवं सर्वे प्रारम्भ हो जाते हैं क्योंकि राजस्व वसूली का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता तो एक ही टारगेट कि व्यापारियों को धरदबोचों लेकिन राहत के नाम कुछ नहीं, क्या हमारे देश में व्यापारी होना कोई अभिशाप है अथवा व्यापारी देश का दोयम दर्ज का नागरिक है या केवल अनाप-शनाप वसूली के केन्द्र है?
लाॅकडाउन के दौरान मैंने अनेक विडीयो बनाकर आप सभी को भेजे हैं, आप लोगों ने पंसद भी किये हैं लेकिन संभवतः सरकार तक हमारी आवाज नहीं पहंुच पायी है। अतः एकजुट होकर आगे बढ़ाये हो सकता है हो सकता है सरकार सुन ले। ,
मैं यह पंक्ति देश के मध्यम श्रेणी के करदाताओं को समर्पित कर लिख रहा हूं।
खुद्दार मेरे शहर में फाके से मर गया, राशन तो बंट रहा था मगर फोटो का डर गया
खाना थमा रहे थे सेल्फी के साथ, मरना था तो भूख से नहीं बल्कि वह गैरत से मर गया।
यह पंक्तियां लाॅकडाउन के दौरान बिल्कुल सटीक बैठ रही है
 
पराग सिंहल, आगरा


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