Tuesday, 7 April 2020

लाॅकडाउन के बाद: करदाता को संरक्षण दे और प्रोत्साहित करे सरकार : पराग सिंहल

आपने मेरा पिछला लेख  ‘व्यापारीः तेरा दर्द न सकझे कोई’ पढ़ा और बहुत से मित्रों ने पसंद किया। पिछले 25 मार्च से कोरोना संक्रमण महामारी के प्रकोप को देखते हुए देश में सम्पूर्ण लाॅकडाउन लागू चल रहा है। केन्द्र सरकार ने केवल लाॅकडाउन को ही लागू नहीं किया बल्कि इस लाॅकडाउन के दौरान आम जनता की परेशानियों को देखते हुए संगठित एवं असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों, किसानों, गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले जनता, उज्जवला गैस योजना और जनधन खाता धारकों के लाभार्थियों के लिए 1.70 लाख करोड़ का राहत पैकेज की घोषणा की, स्वागत योग्य है। इसके साथ सरकारी विभाग के कर्मचारियों की वेतन आदि का भुगतान भी समय से करने की व्यवस्था की। 


उपरोक्त लेख में मैंने यह भी संभावना व्यक्त की थी कि इस लाॅकडाउन के दौरान सरकार ने सभी वर्गाे को राहत प्रदान करने के लिए योजना लागू कर दी। एक राष्ट्रीय स्तर की संस्था ‘एसोसिएशन आॅफ टैैक्स पेयर्स एंड प्रोफेशनल्स’ और ‘कर जानकारी ;पाक्षिक पत्रिकाद्ध’ ने सरकार का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया है। देश में केवल यही वर्ग ही नहीं हैं जो इस लाॅकडाउन के दौरान भूखमरी और परेशानी के दौरान से गुजरेगा या अर्थ संकट का सामना करेगा। इस अध्ययन कितना हुआ है या हो रहा है?


इस लाॅकडाउन के दौरान और बाद में देश की अर्थव्यवस्था पर बड़ा आघात जा रहा है, जिसके लिए संभवतः सरकार चिंचित है और राहत प्रदान की। दुःखद यह भी है कि सरकार ने अभी तक व्यापार जगत को केवल जीएसटी और उसके अन्तर्गत दाखिल होने वाले मासिक एवं त्रैमासिक रिटर्न को समयसीमा की वृ(ि और रिटर्न दाखिल करने की छूट के साथ लगने वाले ब्याज में छूट प्रदान करने की घोषणा करने के बाद मान लिया कि सरकार ने उद्योगों को राहत प्रदान कर उपकार कर दिया।
 
;दिनांक 6 अप्रैलद्ध के एक समाचार पत्र में समाचार ‘उद्योगों को नहीं होगी फंड की कमी.. बैंक दे रहे बिना शुल्क कम ब्याज र कर्ज’ प्रकाशित हुआ कि इस समाचार में बताया गया है कि स्टेट बैंक ने सीईसीएल नाम से अतिरिक्त नकदी सुविधा के तहत 200 करोड़ रुपये तक का कर्ज उद्योगों को दिया जा सकता है। इस समाचार से कोई संदेह नहीं कि इस सुविधा से एमएसएमई सेक्टर के स्माॅल एवं मीडियम सेक्टर के उद्योगों को राहत मिलने की पूरी संभावना है परन्तु प्रश्न उठ खड़ा हो रहा है ऐसे सूक्ष्म अथवा माइक्रो स्तर के व्यापारियों ;दुकानदारोंद्ध को, जो एमएसएमई सेक्टर में शामिल नहीं हो पाते हैं, किसी योजना का हिससा बनने की स्थिति में नहीं हो पाते या सरकार की योजनाओं में ऐसे स्तर के व्यापारी-दुकानदार वर्ग शामिल नहीं है? तो यह वर्ग कैसे स्वयं के अस्तित्व को बचायें? 


देश में लागू लाॅकडाउन खुलने के बाद बाजार में नगदी की स्थिति, और छोटे स्तर के घरेलू और कुटीर उद्योगों की स्थिति का पुनः आंकलन करने का प्रयास करना ही होगा परन्तु सरकार के सामने समस्या यह भी है कि वह देश में कोरोना संक्रमण मरीज मिलने वालों की संख्या को नियंत्रण करने के लिए लाकडाउन को लागू रखती है तो स्थानीय बाजार चैपट हो जाएगा। तो क्या करे सरकार ! लाॅकडाउन लागू रखे या खोल दे । दोनों की स्थिति घातक होती जा रही है। क्योंकि लाॅकडाउन के चलते छोटे व माइक्रो स्तर के दुकानदारों की ही नहीं बल्कि देश के टैक्स अधिवक्ताओं के सामने भी ऐसा हीं संकट खड़ा होता जा रहा है। 


उधर विभिन्न राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे की रिपोर्ट सामने आ रही हैं कि लाॅकडाउन के कारण बंद उद्योगों से देश के बैंक के सामने एनपीए का संकट बढ़ेगा। लेकिन इन सर्वे में छोटे दुकानदार, सेमी एवं माइक्रो दुकानदार, व्यापारीवर्ग के बारे में कोई उल्लेख नहीं हो रहा है। इतना ही यदि आप पिछले 10 वर्षो में प्रकाशित रिपोर्टो का अध्ययन करेंगे तो ऐसे छोटे और स्थानीय व्यापारवर्ग पर कोई अध्यन रिपोर्ट नहीं आती है। हां राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न संगठन देश के बड़े और भारी उद्योगों के बारे में ही चिंतन करते हैं और विकास पर अध्ययन करते हैं, यह आरोप नहीं है बल्कि सत्य है, ऐसे कुटीर और स्थानीय दुकानदार व्यापारी वर्ग देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।


हमको यहां पर दो वर्गो का विश्लेषण करना होगा। पहला कुटीर उद्योग, छोटे दुकान और फैक्टरी के सामने आर्थिक संकट के साथ उत्पादन, कच्चा माल का संग्रह और बैंक )ण और ब्याज की देनदारी की चिंता बढ़ रही है, जैसा कि सरकार ने 3 माह के लिए बैंक )णों की वसूली रोक दी है परन्तु 3 माह बाद बैंक लोन किस्त के साथ 3 माह के ब्याज की वसूली चालू हो जाएगी। उस लाॅक डाउन के दौरान कार्यरत कर्मचारियों के वेतन एवं भत्तों का भुगतान, फैक्टरी, दुकान किराया, बिजली बिल आदि खर्च की चिंता सताने लगी है। फिर बाजार के देनदारी का भुगतान जैसे आर्थिक संकट सामने खड़े होंगे। इसके साथ वाणिज्य कर ;वैटद्ध कर निर्धारण वर्ष 2016-17 का कर निर्धारण और टैक्स की अदायगी जैसे संकट भी मुंह फाड़े खंडे़ होंगे। और परिवार पालन की स्थिति भी खराब होगी कि बच्चों की फीस का भुगतान, बच्चों के नये सत्र के किताब-कापी की व्यवस्था आदि पर चिंता का विषय होगा। वैसे भी सरकार जीएसटी के अन्तर्गत 5 करोड़ रुपये तक के वार्षिक टर्नओवर वाले पंजीकृत डीलर को छोटा व्यापारी मानती आ रही है, लेकिन....


उधर टैक्स अधिवक्तावर्ग,जो कि नये प्रेक्टिस में आये हैं, जिनके पास समुचित कार्य नहीं है, क्या यह संभव होगा कि लाॅक डाउन खुलते ही उनके क्लाइंट व्यापारी उनको फीस का भुगतान करने में सक्षम होगा? ऐसे में यह टैक्स अधिवक्ता अपना परिवार का भरण पोषण कैसे करे, यह गंभीर चिंता का विषय है।


ऐसी सभी भीषण के चलते परिस्थिति में सरकार प्रत्येक वर्ग का उनकी जरुरत का ध्यान रखना भी दायित्व बन जाता है। प्रत्येक वर्ग को राहत देना जरुरी हो जाता है। हमारे देश में एक परंपरा बन चुकी है कि प्रत्येक राजनीतिक पार्टी और दल के साथ सरकार को व्यापारी वर्ग और अधिवक्ता जैसे वर्ग को कभी भी सरकारी योजनाओं और राहत का लाभ का भागीदार नहीं बनाया जाता है। मेरा मानन है कि ऐसी लम्बे लाॅक डाउन के दौरान और बाद में सभी स्तर के व्यापार, दुकानदार और उद्योगों की कमर टूटी जाएगी। 


ऐसी स्थिति में सरकार पुनः विचार करना होगा कि बैंक की कर्ज वसूली का सरल बनाये, सरकारी विभागों की देनदारियों की वसूली भी सरल बनाये, ब्याज की अधिक से अधिक माफी हो। और सभी ऐसे वर्ग जिससे सरकार को टैक्स के रुप में राजस्व देने वाला वर्ग को संरक्षण प्रदान करें, वर्तग्मान परिस्थितियों से निबटने के लिए करदाता वर्ग को प्रोत्साहित किया जाए कि कैसे वह पुनः कार्य धन्धा स्थापित करे और टैक्स के रुप में सरकार को राजस्व प्रदान करें। ऐसी परिस्थिति में आचार्य चाणक्य की युक्ति चरितार्थ हो जाती है कि ‘फूलों से उतना ही रस चूसों, जिससे फूल भी मुरझाये और रस भी पूरा मिलता रहे’।
पराग सिंहल प्रबंध संपादक
कर जानकारी ;पाक्षिकद्ध, आगरा


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