कोरोना जैसी महामारी के समय में भी भगवान राम चर्चा में है। हाल ही में श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा लोगो जारी किया गया। इसे देखते ही सनातनधर्मी आगबबूला हो उठे। पूरा का पूरा लोगो कमियों का भंडार है। वैसे भी अयोध्या से लेकर काशी तक के मंदिर आजकल चर्चा में हैं। अयोध्या के ट्रस्ट की कार्यप्रणाली और ट्रस्टियों की नियुक्ति पहले से ही प्रश्नों के घेरे में है। शंकराचार्यों और तमाम सनातनी आचार्यों से मिलकर बना श्रीरामालय ट्रस्ट ही मंदिर निर्माण का एकमात्र पात्र है, इसे रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के ट्रस्टियों के सिवाय पूरा देश समझ चुका है।
पिछले दिनों शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा बनवाये विशाल स्वर्णालय की उपेक्षा कर किस तरह एक छोटे से चाँदी के सिंहासन पर प्रभु श्रीराम को बिठाया गया, उस पर धर्माचार्यों के साथ जनता की भी त्योरियाँ चढ़ गई हैं। यह ट्रस्ट के लोगों की क्षुद्र मानसिकता का परिचय दे रहा है, वैसे इनके प्रमादित कार्यों की सूची लंबी है। भगवान राम को अस्थायी मंदिर में ले जाने के मुहूर्त चयन पर तो कोई सामान्य सनातनी भी लज्जित हो जाए। अशिक्षित सनातनी भी जानते हैं कि चतुर्दशी तिथि किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ के लिए निषिद्ध है। सबसे कठिन समय वह था जब प्रभु श्री राम लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे थे। वे जानते थे कि देरी हो जाने पर भरत जी चिता में प्रवेश कर जायेंगे, फिर भी वे मुहूर्त देखकर नदी किनारे रुक जाते हैं और हनुमान जी को भेजते हैं। जब अनुकूल नक्षत्र न होने पर स्वयं प्रभु श्री राम ने नगर प्रवेश नहीं किया तो क्या अब निषिद्ध तिथि पर मंदिर प्रवेश उन्हें प्रिय रहा होगा?
लापरवाही की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। ट्रस्टियों ने हनुमान जयंती पर कोरोना काल में ही लोगो प्रसारित कर डाला जो उनकी राम निष्ठा को कम संवेदनहीनता को अधिक दर्शा रहा है। लोगो में दिया वाक्य 'रामो विग्रहवान धर्मः' ट्रस्टियों के ज्ञान की पोल खोलने के लिए काफी है। संस्कृत का साधारण सा विद्यार्थी भी जानता है कि यहाँ 'न्' आयेगा। काशी के दंडी सन्यासी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने जब राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन की चेतावनी दी तब कहीं जाकर लोगो में आंशिक फेरबदल हो सका। वास्तव में संस्कृत में ' विग्रहवान धर्मः' का हिंदी में अर्थ होता है अधर्म का साकार रुप, इसलिए 'न' पर हलंत अनिवार्य है। लोगो में हनुमान जी के दो चित्र बनाये गये हैं जो दिखा रहा है कि इन ट्रस्टियों के लिए सनातनी देवी देवता बेल बूटे से अधिक नहीं। कोई भी राम भक्त न तो इस लोगो को स्वीकार सकता है न ही इसे बनाने वाली मूर्खों की जमात को। स्पष्ट है कि इन लोगों की राम मंदिर के प्रति आस्था नहीं, बल्कि इनकी आस्था मात्र ट्रस्ट के बहाने मिलने वाली सुविधाओं पर है।
डा. दीपिका उपाध्याय, आगरा।
हिन्दी दैनिक उमेश वाणी समाचार पत्र(सिद्धार्थ नगर उत्तर प्रदेश)
Friday, 8 May 2020
राम मंदिर निर्माण में भक्तिशून्यता
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