Sunday, 28 June 2020

मंहगाई का विस्फोट,थाली से दूर हुई सब्जियां

सिद्धार्थ नगर । अभी जून ही चल रहा है परन्तु सब्जियों का भाव आसमान छूने को आतुर है। पहले ही दालों की महंगाई से जूझ रहे बहुसंख्यक बेरोजगारों को दिन में ही तारे दिखाई पड़ रहे हैं। जून के प्रथम सप्ताह में सब्जियों का रेट सामान्य था ।जून के तीसरे हफ्ते से शुरू हुई बारिश ने रसोई घर का स्टीमेट बिगाड़ कर रख दिया है ।आलू और प्याज जैसे सब्जी में उछाल आया है तो टमाटर के भाव 60 रुपये प्रति किलो पहुंच गया है।हरी सब्जियों में परवल ,कटहल तोरई भिंडी सरपुतिया आदि के दाम आसमान छू रहे हैं। कुछ जानकारों के मुताबिक अधिक बारिश की वजह से खेतों में पानी भरने की वजह से दामों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है। वहीं आवाक कम होने से महंगाई बढ़ रही है। कुछ तो इसे डीजल की बढ़ती कीमतों से जोड़ रहे हैं कि अगर भाड़ा महंगा रहेगा तो सामानों के दाम बढ़ेंगे ही । गांवो में बरसात में बोई जाने वाली सब्जियां छुट्टे जानवरों के कारण लोग किनारा कस लिए हैं । उधर दाल की महंगाई कम होने का नाम नहीं ले रही है । कोरोना वायरस के कारण लाक डाउन फिर अन लाक डाउन ने सीमित कर रखा है । सरकार के निगाहों में गांवों में केवल मजदूर ही बसते हैं । मनरेगा या पूर्ति विभाग के जरिए उनके ऊपर थोड़ा मरहम लगा दिया जाता है। मिठवल चौराहे पर सब्जी खरीद रहे एक ग्राहक से सब्जी के महंगाई के बारे में पूछने पर उसने कहा कि भैया देखो अब दिन कैसे कटेगा। यही हाल डुमरियागंज के भवानी गंज में भी नजर आया है। बांसी क्षेत्र के महोखवा किलकिल रोड़ पर चाय की दुकान चला रहे एक दुकानदार का कहना है कि ये महंगाई अब नवम्बर तक रहेगी ।आलम यह है कि मुद्रा के विभाजन का सिद्धांत पूरी तरह लागू है ।एक तरफ व्यवस्था द्वारा वित्त पोषित पूरा समूह है जो महंगाई का विधवा अलाप करके महंगाई भत्ता पा रही है तो दूसरी तरफ बड़ी संख्या में जीने और संघर्षों के मध्य ऐंडिया रगड़ रहा है।और सबसे अधिक टैक्स भी भर रहा है। सरकारी व्यवस्था अपने के प्रति अधिक उदार होती है । पिछले फरवरी में हुई बारिश ने ग्रामीणों के खेतों में बोई गई आलू के फसलों पर कहर बन कर आई थी।इस मंहगाई से पिस रहे आम जनमानस को छुटकारे का कोई भी समुचित व्यवस्था नहीं है और पिसना उसका नियत बन चुका है।


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