Friday, 5 June 2020

विश्व पर्यावरण दिवस : ये कहां आ गए हम यूं ही...

सिद्धार्थ नगर । वैश्विक समाज में 05 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। गंभीर बीमारियों, प्राकृतिक आपदाओं से संघर्ष कर रहा मानवीय समुदाय भविष्य के प्रति आशान्वित हैं। भारतवर्ष की कल्पना गांवों से की जाती है जहां एक समुचित व्यवस्था हुआ करती थी जो पूर्वजों के प्रति उत्तरदाई थी और भविष्य के प्रति चौकन्ना रहा करती थी।प्रत्येक पौधे को देवतुल्य समझ कर उसे सहयात्री बनाने का भाव भरा हुआ था । वृक्षों से , नदियों से,कानन से, पहाड़ों से पंछियों से लय और राग के मधुर तराने सीखता हुआ मानव अनन्त बाधाओं को पार करता रहा है। जीव समुदाय का सर्वोच्च प्राणी घोषित मानव आज अर्थ के कुटिल चक्र में फंस कर असहाय होकर नियंता को याद करने पर विवश हैं।गांव आज शैतानी ताकतों के कब्जे में है। वृक्षों लगाने में दूरगामी सोच का क्षरण हो गया है। बढ़ती आबादी ने गांवों के संसाधनों पर अतिक्रमण कर दिया है।गांव की उत्पादकता अब ब्लाक पर बैठे धनलोभियो के हाथ में गिरवी पड़ी है। आजादी के बाद से ही कभी गांवों को उनके पैरों पर खड़ा नहीं होने दिया गया है।मुद्रा के विभाजन में असमानताएं चल रही है। सामूहिक सोंच का क्षरण होकर व्यक्तिगत स्वार्थ हावी है। प्रर्यावरण संबंधी योजनाओं की बैठक में लंबे चौड़े बिल बाउचर बन रहे हैं। गांवों से जल निकासी अवरूद्ध है। कर से वसूले गए पैसों पर व्यवस्था के माध्यम से लगाए गए पौधे जानवरों के निवाले बन रहे हैं।प्रयावरणीय असंतुलन का दौर जारी है बेमौसम बरसात ने कृषि का बजट बिगाड़ रखा है। गांव अब सरकारी अनुदान को देखने पर विवश है । सड़कों पर छोटे जानवरों की लाशें छितराई नजर आती है।गौरैया अब यदा कदा नजर आ रही हैं।मानव की सोंच भले ही व्यापक हो परन्तु लगाम लगाना अति आवश्यक है।


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