Sunday, 26 July 2020

कोटे का अनाज दुकानों पर आने से गेहूं चावल का बाजार टूटा

 


सिद्धार्थ नगर । मंहगाई अपने पूर्ववत चाल में चल रही है परन्तु ग्रामीणों खासकर किसानों के जीवन रेखा मानी जाने वाले गेंहू चावल की बाजार ध्वस्त है। गेहूं और मोटे चावल का फुटकर रेट 16 तो नपौना करने वाले व्यापारी 17 रुपये की रेट से गल्ला खरीद रहे हैं। सरकारी खरीद के उलझाऊ आंकड़े की बात छोड़ दिया जाए तो अप्रैल के शुरुआत में 1600 से चला गेहूं 1800 तक पहुंच गया था ।इसी के साथ मोटा चावल का रेट भी तय किया जा रहा था । फिर जब बाजार टूटा तो 100 से लेकर 200 रूपया प्रति कुंतल नीचे आ गया है। कुछ जानकारों की मानें तो माले मुफ्त में मिल रहे कोटे के अनाजों की इसमें प्रमुख भूमिका है। लगभग 80 प्रतिशत अपात्रों का अनाज सीधे दुकान पर पहुंच रहा है । पात्र गृहस्थी और अंत्य़ोदय योजना से जुड़े पात्रों की अगर सच्चाई से जांच कर ली जाए तो काफी लंबा झोल निकलेगा । कुछ कारोबारियों की माने तो लाक डाउन के कारण आवागमन बंद होने से अनाज के कीमतों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।योजना से जुड़े कई लोग कोटेदार के हाथ ही अनाज बेंच दे रहे हैं । अपने अच्छे दिनों के तलाश में जिन लोगों ने अनाज को रोक रखा था बाजार के भाव को देखकर सर पकड़ लिया है।कमाई का अहम स्थान होने से पूर्ति विभाग पर सबकी कृपा बनी रहती है। कोटेदार पर पूर्ति निरीक्षक की कृपा और पूर्ति निरीक्षक पर माननीयों की कृपा हमेशा बरसती रही है। भोजन का अधिकार कानून से किसका भला हो रहा है इसका जांच हो ही नहीं सकता है। मंहगाई तो है परन्तु कल कारखानों में बने सामानों की है। बेहिसाब पानी से नष्ट हो चुके सब्जियों की है न कि किसानों के हाड़ तोड़ मेहनत से उपजाए गए उनके फसलों का है।इस बारे में प्रभारी अध्यक्ष किसान यूनियन के प्रदीप पांडेय जी का कहना है कि शोषण किसानों का ही हो रहा है किसानो के फसलों का बीमा हो अनाज खरीद हो या अन्य जगह । गेहूं खरीद लाल फीताशाही का शिकार हो गया था। जब लोग गल्ला पा रहे हैं तो दाम गिर रहा है । बाजार से कभी किसानों का भला नहीं हुआ है।


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