Thursday, 22 October 2020

तीन पाटों मे पिस रहा किसान,जिम्मेदार बने अंजान

उपज मे गिरावट, मंहगी कटाई ,कौडी के भाव कीमत


सिद्धार्थ नगर । बडी शोर सुनते थे पहलू मे दिल का,जो चीरा उसे तो खूं भी न निकला की कहावत अन्नदाताओं पर सटीक बैठ रही है।बहुसंख्यक वर्ग किसान इस समय दैहिक,दैविक और भौतिक पाटों मे पडकर पिस रहा है।जिम्मेदारों का कांफ्रेंस और गोष्ठी जारी है। धान कटाकर घर पर पहुंचाए कई किसानों का कहना है कि विगत वर्ष तुलना मे धान इस साल कम पैदावार हुआ है।अगली और पिछडी ब्राइटी(नस्ल)के धानों मे हरदिया रोग लग गया है।रमाकांत मिश्रा सकारपार बांसी बता रहे हैं कि उपज मे 40से लेकर 50प्रतिशत की गिरावट हुई है।अच्छी बारिश के बावजूद पैदावार मे कमी के बावत कहा कि रोगों ने फसल को जकड लिया था।और धान की फसलों ने जब फूटना शुरू किया था तब दो-तीन दिन तक तेज हवा चल दिया था।मनोज पांडेय महुलानी का भी मानना है कि दैवीय आपदा किसानों पर भारी पडी।लाक डाउन से टूट चुके किसानों के पास खेतों मे दवा डालने का धन बचा ही नहीं।जो धान कट रहा है उसमें पैइय्या अधिक है।उधर कंपाइन मालिको ने रैपर के नाम पर कटाई मे जबरदस्त वृद्धि कर दी है।केवल नाम भर रैपर का है सब कुछ पूर्ववत चल रहा है।इनकी मनबढई और अवैध वसूली के खिलाफ कोई भी किसान हितों के लिए बनाए गए संगठन के मुहं से आवाज नहीं निकल रहा है।सूत्रों के अनुसार ज्यादातर के पास खुद की कंपाइन है इसलिए मामले को ठंडा ही रहने दे रहे है ।सरकारी निगरानी की बात है वो भी अधिसूचना जारी करके गोष्ठी करने मे लिप्त हैं।भौतिक तापों मे धान की गिरती कीमतों ने दशको का रिकार्ड तोड दिया है।उत्पादन-मांग-आपूर्ति का त्रिज्या बुरी तरह लडखडा गया है।सरकारी खरीद का हाल क्रय केंद्र प्रभारियों के ऊपर है।ये तो निश्चित है कि उच्च स्तर से घोषणा होगी कि सरकार ने रिकार्ड तोड धान की खरीद की है परन्तु वो धान कहाँ से तौल कर गोदाम मे पहुंचा है उच्च स्तर ने कभी इस माध्यम को जानने की कोशिश नहीं की है।कुछ लोगों का कहना है कि आपूर्ति और मांग है ही नहीं तो कीमत कहां से बढेगा।सरकार हर व्यक्ति को 10 किलो अनाज प्रत्येक महीने मे मुफ्त दे रही है तब दाम कैसे बढेगा।उसमे से ज्यादातर अनाज घूम कर मंडी और बाजार मे पहुंच रहा है।समाज के सबसे निचले पायदान पर खडे किसानों का दर्द आह के रूप मे निकल रहा है।ज्यादातर लघु एवं सीमान्त किसानो के जीविका का संसाधन खेती की उपज ही है।असंगठित क्षेत्रों का शोषण आदि कालीन परंपरा है।व्यवस्था बदलती है परंपराएं नही बदलती।धचके पेट सूखी आंखें रुक रुक कर निकलती जबान ही बता देती है कि किसान है।कहीं निकलने वाली आह भारी न पड जाए।


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