राकेश दूबे सहसम्पादक
सिद्धार्थनगर। सोमवार 22 मार्च को विश्व जल संरक्षण दिवस के रूप मे मनाया जाता है।सनातन धर्म के प्रारंभिक चरण मे ही मनीषियों द्वारा जगत संचालन के शब्द,स्पर्श रूप रस और गंध के रूप मे जिन 05 महतत्वों का साक्षात्कार किया था उसमे रस या जल ही है जहां से जीवन का क्रमिक विकास शुरू होता है।सृजन और विकास के अंधे दौर में जल एक भयानक समस्या के रूप मे परिलक्षित हो रहा है।प्राकृतिक संसाधन पर बाजार हावी हो गया है। जिस विशाल स्तर पर हम हवा और पानी को प्रदूषित करने में लगे हैं, उससे पृथ्वी पर उसके जीवन का अबतक का सबसे बड़ा संकट उपस्थित है। अपनी नदियों, तालाबों और भूमिगत जल के साथ जैसा अनाचार हम कर रहे हैं, उससे हमारी नदियां जहरीली भी हो रही है और सिकुड़ भी रही हैं। तालाब और जलाशय मर रहे हैं। धरती के भीतर पानी का स्तर गिर रहा है। आने वाले जल संकट की आहटें साफ़ सुनाई देने लगी हैं।स्थिति है कि ताल और पोखरों को सरकारी संरक्षण मे लेकर जिम्मेदारों द्वारा नीलाम कर दिया जा रहा है।चंद पैंसों के खातिर समय से पहले ताल पोखरों को सुखाने का सिलसिला जारी है।पानी के खोज मे निकले मूक ,लाचार बेबस जानवर गाडी के पहियों के नीचे अपनी जीवन लीला समाप्त कर दे रहे हैं।सबसे ज्यादा अतिक्रमण जल संसाधन क्षेत्रों का हुआ है। यदि समय रहते हम नहीं जगे तो विनाश दूर नहीं। कहा भी जा रहा है कि अब अगला विश्वयुद्ध भूमि या सत्ता के लिए नहीं, जल के लिए लड़ा जाएगा।जल संरक्षण के शुरुआत छोटे पैमाने पर ही शुरू किया जाए।वर्षा के जल को सुरक्षित करने का ठोस योजना बननी चाहिए।ताल पोखरों के जल को संरक्षित किया जाए।नदियों के किनारे से अतिक्रमण हटाया जाए
आज 'विश्व जल दिवस' है। आज के दिन हम सबको बधाई या शुभकामनाओं की नहीं, चेतावनी की ज़रुरत है इस बारे मे प्रभागीय वनाधिकारी आकाशदीप बधावन ने कहा कि बिलकुल वर्षा के जल को संग्रहित करने के साथ उसके सुरक्षा की आवश्यकता है।वन क्षेत्रों मे विभाग द्वारा छोटे छोटे तालाब और पानी का टैंक बनाया जाता है।नीम जामुन जैसे वाटर लेबल को मेन्टेन करने वाले वृक्ष लगाए जाएं।लोगों मे इस बात का डर होता है कि लिप्टस अधिक जल सोखता है जबकि ऐसी कोई बात नहीं।जल संरक्षण की सामूहिक पहल जरूरी है।
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