राकेश दूबे सहसम्पादक
सिद्धार्थनगर।सजनी मै भी राजकुमार के तर्ज पर प्रधानी का नगाडा जारी है।सबसे अधिक आपाधापी पिछडे वर्ग के लिए चयनित गांवो मे हो रहा है।पुराने समय के मुद्दे गौड हो चुके।प्रधानों ने अपने भूले विसरे खानदान का पोथा उलटना शुरू कर दिया है।सूत्रों की मानें तो किसी ने कान मे फूंक दिया कि जब पटीदार और खानदान ही साथ नहीं है तो दूसरे कैसे आएंगे।बात को सौ टका सही मानकर खानदानी वोटों को दुरस्त किया जा रहा है।कहीं दर्जन भर तो कहीं उससे अधिक लोगों की फौज अपनों को तलाश रहे हैं।इस बीच मे कटेरों ने फायदा देखकर मुर्गे की दामों मे अप्रत्याशित रूप से बढोत्तरी कर दी है।पेटी भर भर कर देशी शराब गांवों मे पहुंच रहे हैं।चुनावी त्यौहार मे रंगे सियारों की आवाज बढ गई है।इश्क और राजनीति मे सब जायज है के पुराने स्लोगन पर सरपट घुडदौड जारी है।लोकतंत्र मे महिला प्रत्याशी घर मेबैठी हैं तो स्वतः घोषित प्रतिनिधि पति घर -घर हाजिरी दे रहे हैं।वैसे भी नाम मात्र को महिलाएं चुनी ही जाती हैं।प्रशासन निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के कवायद में जुटा है तो रात होते ही शराबियों का जत्था हाथ जोडे वोट मांगने मे मुलतबा है।गांवो के तरफ आ रही धन के प्रवाह को लपलपाती जिव्हा से कई लोग निहार रहे हैं।गांव को स्वकेन्द्रित न बनाकर अपंग बनाने मे सारा सिस्टम जुटा है।भूख पलायन के सीने पर चढकर देशी घूट के कहकहे चल रहे हैं।ग्रामीण संसाधनों के उपयोग से आर्थिक आजादी की बाद दिवास्वपन हो गया है।सवाल इमानदारी का न होकर कमीशन खोरी का बन चुका है।हमाम मे सब नंगे हैं।फिर भी खानदान साथ है तब अन्य बिरादरी भी साथ देगी।
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