राकेश दूबे सहसम्पादक
पालतू जानवरों से हमेशा रहता है गुलजार, काश्तकारों पर आफत
बांसी।क्षेत्र के किसानों को पानी देने के नाम पर हजारों हेक्टेयर भूमि को खोदने के पश्चात सरयू नहर की पटरियों को चारागाह बनाकर छोड दिया गया है।पालतू गाय भैंस बकरियों की वजह से नहर के किनारे वाले काश्तकारों की मेहनत जानवरों के पेट मे जा रहा है।विभाग के जिम्मेदार शांत होकर बैठे हैं।
पिछली सदी के नवें दशक मे शुरू हुआ सरयू नहर परियोजना से काश्तकारों को भरोसा दिलाया गया कि उनके खेतोँ को पानी मिल जाएगा।डुमरियागंज के विथरिया से चल कर सहिजनवा तक जाने वाले मुख्य शाखा की कहानी 30 वर्ष बीतने के बावजूद भी अधूरी है।खरीफ कालीन फंसलो के समय नहर मे टेल तक पानी चलाने का दावा करने वाले विभाग का अगर दुरूस्त है तो केवल फाइल दुरूस्त है।नहर चलते समय हल्लौर,उपधी,सिसई मिठवल से दबंग हर वर्ष मुख्य शाखा दबंगो द्वारा काट दिया जाता है।रबी कालीन फसलों मे 20 दिसंबर को पानी डाल दिया जाता है एक दो दिन नहर चलने के बाद फिर जुलाई तक बंद कर दिया जा रहा है।इस बीच मे ग्रामीण क्षेत्रों मे व्यापारिक उद्देश्य से पाले गए जानवरों का उत्पात किसानों के फसलों पर होता रहता है।इन जानवरों मे सुबह 05 बजे सूअरों का झुंड 08 बजे तक कई ग्रुप मे बकरियों का झुंड,10 बजे के बाद पालतू गायों का समूह और 02 बजे के बाद से भैंस पालक नहर की पटरियों पर आ जाते हैं।विभाग लगातार 02 वर्षौं से पेंड लगाने के लिए केवल गड्ढा भर खोद रहा है।सैकड़ों की संख्या मे चर रहे जानवरों के कारण विवाद भी उत्पन्न हो जाता है। 1873 अंग्रेजी हुकूमत मे बना नहरी कानून यहां आकर दम तोड देता है।विभाग मे हर काम के लिए जिम्मेदारी तय की गई है।इस संबध मे सेहरी फार्म हाउस के इंचार्ज का कहना है कि जानवरों के कारण बहुत नुकसान हो जाता है।बरगदी के बब्बू दूबे का कहना है बकरियों के वजह से बहुत नुकसान हो रहा है।इस विषय में एक्सीएन उग्रसेन सिंह का मोबाइल आउट आफ नेटवर्क तो जेई अमरेंद्र पटेल ने फोन रिसीव नहीं किया।
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