शैलेन्द्र प्रताप सिंह श्रीनेत
चिल्हियां/सिद्धार्थनगर।
दीपावली पर सूरन की सब्जी खायीं जाती है।
राज्य सभा सदस्य बृजलाल ने बताया कि पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार और नेपाल में दीपावली पर्व पर सूरन की सब्ज़ी अनिवार्य रूप से बनाई जाती है। इसे जिमीकंद और ओल नामों से भी जाना जाता है। पहले गावों में कच्चे मकानों की पुस्ती पर सूरन लगा लिया जाता था। बरसात होते ही सूरन उग जाता था और ठंडक में इसके पौधे समाप्त हो जाते थे और बरसात में पुनः उग आते थे। समय के साथ जमीन के अन्दर इसका कन्द बढ़ता रहता था। कार्तिक माह में सूरन निकाला जाता था, दिवाली पर सब्ज़ी अवश्य बनाई जाती थी। सूरन बहुत पौष्टिक सब्ज़ी है, जिसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड, सेलेनियम, पोटैशियम, मैग्निशियम, आयरन, फ़ॉस्फ़ोरस, फ़ोलिक एसिड, विटामिन B-6, विटामिन-B और फाइबर पाया जाता है। यह मस्तिष्क-स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है। दीपावली पर इसका सेवन बहुत शुभ माना जाता है। सब्ज़ी के अतिरिक्त इसका “चोखा” भी बहुत स्वादिष्ट होता है। इसका कबाब भी बनाया जाता है। उत्तर प्रदेश के “कायस्थ” परिवारों में दिवाली के अवसर पर सूरन का कबाब बनाने की परम्परा है। पुराने देशी प्रजाति के सूरन में “कनकनाहट” होता था, जो अरूई में पाया जाता है। सब्ज़ी काटते समय अंगुलियों में खुजलाहट लगती है। देशी सूरन को इमली की पत्तियों के साथ उबला जाता था, जिससे खुजलाहट खत्म हो जाती थी। सब्ज़ी में आम की खटाई भी डाली जाती थी। यह खुजलाहट सूरन में मौजूद आक्ज़ैलिक एसिड के कारण होती थी, जो सूरन की कीड़ों से सुरक्षा करती थी। अब सूरन की नई प्रजाति में आक्ज़ैलिक एसिड नहीं है, जिससे अब खुजलाहट नहीं होती है। सूरन आसानी से लगाया जा सकता है। सूरन की खुदाई के समय छोटे-छोटे सूरन मिलते हैं, जिसे मैं तुरन्त मिट्टी में दबा देता हूं, जो बरसात के समय उग आते हैं। सूरन की व्यावसायिक खेती की जा रही है। फ़रवरी माह में इसे लगाया जा सकता है। गणेश प्रजाति का सूरन काफ़ी लोकप्रिय है। सूरन के कंद में कई आंखें होती है जिसे काटकर लगाया जाता है।
No comments:
Post a Comment