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Wednesday, 5 July 2023

लोकसभा चुनाव के दौरान योगी सरकार की नई कैबिनेट में मिल सकती है विनय वर्मा को जगह

जनता के दिलों में बसने एवं दिनों-रात मेहनत करने से योगी जी को आया बहुत पसन्द


सरताज आलम

सिद्धार्थनगर

योगी सरकार के लोकसभा चुनाव के दौरान दूसरे कार्यकाल में सिद्धार्थनगर को इस बार विशेष प्राथमिकता मिलने के संकेत अभी से शुरू हो गये हैं। योगी सरकार के लोकसभा चुनाव के दौरान दूसरे कार्यकाल में कुछ विधायकों को मन्त्रिमण्डल में शामिल होने के लगातार संकेत मिल रहे हैं। दूसरी तरफ एनडीए की सहयोगी अपना दल के विधायक को भी मन्त्री बनाने की चचायें काफी तेज हो गयी है। पूर्वांचल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपना दल के साथ मिलकर काफी अच्छा प्रदर्शन किये थे। अपना दल से चुनाव लड़ने वाले विधायक विनय वर्मा को मंत्रीमण्डल में शामिल करने की संभावनाये काफी प्रबल नजर आ रही है। भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव से पहले ही इस बात के संकेत दे दिये थे कि इस बार मंत्रिमण्डल में सहयोगी दलों को साथ लेकर चला जायेगा। अगर योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान भाजपा हाईकमान सहयोगी दलों को मंत्रिमण्डल में जगह देती है तो विधायक विनय वर्मा के मंत्री बनने की संभावनायें काफी प्रबल हैं। विधायक विनय वर्मा परिवार के साथ सेक्टर 20 में रहते हैं और पिछले कई सालों से  विनय वर्मा पूर्वांचल में राजनीति कर रहे हैं। विधायक विनय वर्मा मूल रूप से गोरखपुर के रहने वाले हैं। विनय वर्मा गोरखपुर से पंचायत सदस्य भी रह चुके हैं। इस बार विधायक विनय वर्मा ने सिद्धार्थनगर की शोहरतगढ़ विधानसभा सीट से चुनाव जीते थे। अपना दल के विधायक विनय वर्मा ने सपा के प्रत्याशी को बड़े अंतर से चुनाव में हराया था। जनता के दिलों में बसने एवं दिनों-रात मेहनत करने से इन बातों को योगी जी बहुत पसन्द आया है।

Saturday, 25 April 2020

भारतीय संस्कृति का महापर्व अक्षय तृतीया : सभ्यता के आइने में

सिद्धार्थ नगर। त्यौहारों के धर्म वैदिक सभ्यता में यूं तो रोज ही रास है रंग है उत्साह के साथ मंगलमय जीवन की अक्षय कामना है पर उन त्यौहारों में विशेषण की संज्ञा के लिए अक्षय तृतीया का विशेष स्थान है।
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को मनाए जाने वाला महा उत्सव इस बार 25 अप्रैल को 11.50 रात्रि से 26अप्रैल को दोपहर 01 बजकर 22 मिनट रहेगा। हमारे यहां उदया तिथि में त्यौहार मनाया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस बार यह तिथि रोहिणी नक्षत्र में है। ऐसा माना जाता है कि कोई भी शुभ या महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए नक्षत्र देखने की आवश्यकता नहीं होती है
। इस स्वयं सिद्ध मुहूर्त का फल भी अक्षय होता है। शास्त्रों में इस तिथि का अपना अलग महत्व है तो काल गणना में तिथि का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। भगवान विष्णु का पूजन ब्रम्ह मुहूर्त में करने से अक्षय फल मिलता है।भगवती अन्नपूर्णा देवी का प्रसाद चावल,नमक ,घी, सब्जी, फल,और अंग वस्त्र का दान करने से अक्षय फल प्राप्त होता है।इस दिन विष्णु भगवान के छठे अवतार परशुराम का जन्म हुआ था।देवी भगवती अन्नपूर्णा का जन्म दिवस इसी दिन मनाया जाता है।गंगा जी का भू लोक पर अवतरण अक्षय तृतीया को ही हुआ था। सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ और वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना इसी दिन प्रारंभ किया था। इसके साथ ही बिहारी जी चरण कमलों का दर्शन करने की मनोकामना अक्षय तृतीया को ही पूरा होता है।लोक जीवन की बात करें तो अक्षय तृतीया से ही खेतों की जुताई शुरू किया जाता है। इस समय मानवीय सभ्यता अदृश्य शत्रु से संघर्ष कर रहा है।इस परिस्थितियों में हमारा उमेश वाणी दैनिक समाचार पत्र परिवार अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर आप सब को शुभकामना देते हुए आशा करते हैं कि नये उत्साह से हम लोग इस महामारी से लड़ कर सभ्यताओं के अस्तित्व की रक्षा करें


Wednesday, 22 April 2020

नागा रहस्य और इतिहास के आइने में 

नागा साधूओं की तस्वीर दिखा कर कुछ मुर्ख, हिन्दु धर्म के साधूओं का अपमान करने की और हिन्दुओं को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं उन लोगों को नागा साधूओं का गौरवशाली इतिहास पता नहीं होता ।
आईये आज आप लोगोँ को नागा साधूओं का गौरवशाली इतिहास और उसकी महानता से अवगत कराता हूँ।
नागा साधूओं का इतिहास
नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने तथा युद्ध कला में माहिर होने के लिये प्रसिद्ध हैं। ये विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परम्परा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी।
भारतीय सनातन धर्म के वर्तमान स्वरूप की नींव आदिगुरू शंकराचार्य ने रखी थी। शंकर का जन्म ८वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था जब भारतीय जनमानस की दशा और दिशा बहुत बेहतर नहीं थी। भारत की धन संपदा से खिंचे तमाम आक्रमणकारी यहाँ आ रहे थे। कुछ उस खजाने को अपने साथ वापस ले गए तो कुछ भारत की दिव्य आभा से ऐसे मोहित हुए कि यहीं बस गए, लेकिन कुल मिलाकर सामान्य शांति-व्यवस्था बाधित थी। ईश्वर, धर्म, धर्मशास्त्रों को तर्क, शस्त्र और शास्त्र सभी तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना के लिए कई कदम उठाए जिनमें से एक था देश के चार कोनों पर चार पीठों का निर्माण करना। यह थीं गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ। इसके अलावा आदिगुरू ने मठों-मन्दिरों की सम्पत्ति को लूटने वालों और श्रद्धालुओं को सताने वालों का मुकाबला करने के लिए सनातन धर्म के विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना की शुरूआत की।
आदिगुरू शंकराचार्य को लगने लगा था सामाजिक उथल-पुथल के उस युग में केवल आध्यात्मिक शक्ति से ही इन चुनौतियों का मुकाबला करना काफी नहीं है। उन्होंने जोर दिया कि युवा साधु व्यायाम करके अपने शरीर को सुदृढ़ बनायें और हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल करें। इसलिए ऐसे मठ बने जहाँ इस तरह के व्यायाम या शस्त्र संचालन का अभ्यास कराया जाता था, ऐसे मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा। आम बोलचाल की भाषा में भी अखाड़े उन जगहों को कहा जाता है जहां पहलवान कसरत के दांवपेंच सीखते हैं। कालांतर में कई और अखाड़े अस्तित्व में आए। शंकराचार्य जी ने अखाड़ों को सुझाव दिया कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए जरूरत पडऩे पर शक्ति का प्रयोग करें। इस तरह बाह्य आक्रमणों के उस दौर में इन अखाड़ों ने एक सुरक्षा कवच का काम किया। कई बार स्थानीय राजा-महाराज विदेशी आक्रमण की स्थिति में नागा योद्धा साधुओं का सहयोग लिया करते थे। इतिहास में ऐसे कई गौरवपूर्ण युद्धों का वर्णन मिलता है जिनमें ४० हजार से ज्यादा नागा योद्धाओं ने हिस्सा लिया। अहमद शाह अब्दाली द्वारा मथुरा-वृन्दावन के बाद गोकुल पर आक्रमण के समय नागा साधुओं ने उसकी सेना का मुकाबला करके गोकुल की रक्षा की।
 संन्यासी संप्रदाय से जुड़े इन साधुओं का संसार और गृहस्थ जीवन से कोई लेना-देना नहीं होता। गृहस्थ जीवन जितना कठिन होता है उससे सौ गुना ज्यादा कठिन नागाओं का जीवन है। यहां प्रस्तुत है नागा साधुओं से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी।
नागा अभिवादन मंत्र : ॐ नमो नारायण
नागा का ईश्वर : शिव के भक्त नागा साधु शिव के अलावा किसी को भी नहीं मानते।नागा वस्तुएं : त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्ष, तलवार, शंख, कुंडल, कमंडल, कड़ा, चिमटा, कमरबंध या कोपीन, चिलम, धुनी के अलावा भभूत आदि।
नागा का कार्य : गुरु की सेवा, आश्रम का कार्य, प्रार्थना, तपस्या और योग क्रियाएं करना।
नागा दिनचर्या : नागा साधु सुबह चार बजे बिस्तर छोडऩे के बाद नित्य क्रिया व स्नान के बाद श्रृंगार पहला काम करते हैं। इसके बाद हवन, ध्यान, बज्रोली, प्राणायाम, कपाल क्रिया व नौली क्रिया करते हैं। पूरे दिन में एक बार शाम को भोजन करने के बाद ये फिर से बिस्तर पर चले जाते हैं।
सात अखाड़े ही बनाते हैं नागा : संतों के तेरह अखाड़ों में सात संन्यासी अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं:- ये हैं जूना, महानिर्वणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।
नागा इतिहास : सबसे पहले वेद व्यास ने संगठित रूप से वनवासी संन्यासी परंपरा शुरू की। उनके बाद शुकदेव ने, फिर अनेक ऋषि और संतों ने इस परंपरा को अपने-अपने तरीके से नया आकार दिया। बाद में शंकराचार्य ने चार मठ स्थापित कर दसनामी संप्रदाय का गठन किया। बाद में अखाड़ों की परंपरा शुरू हुई। पहला अखाड़ा अखंड आह्वान अखाड़ा’ सन् 547 ई. में बना।
नाथ परंपरा : माना जाता है कि नाग, नाथ और नागा परंपरा गुरु दत्तात्रेय की परंपरा की शाखाएं है। नवनाथ की परंपरा को सिद्धों की बहुत ही महत्वपूर्ण परंपरा माना जाता है। गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गुरु गोरखनाथ , साईनाथ बाबा, गजानन महाराज, कनीफनाथ, बाबा रामदेव, तेजाजी महाराज, चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि। घुमक्कड़ी नाथों में ज्यादा रही।
नागा उपाधियां : चार जगहों पर होने वाले कुंभ में नागा साधु बनने पर उन्हें अलग अलग नाम दिए जाते हैं।
इलाहाबाद के कुंभ में उपाधि पाने वाले को नागा, 
उज्जैन में 2.खूनी नागा, 
हरिद्वार में 3.बर्फानी नागा 
तथा 
नासिक में उपाधि पाने वाले को 4.खिचडिया नागा कहा जाता है। इससे यह पता चल पाता है कि उसे किस कुंभ में नागा बनाया गया है।
उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं। कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव उनके पद होते हैं। सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पद सचिव का होता है
कठिन परीक्षा में नागा साधु बनने के लिए लग जाते हैं 12 वर्ष। 
नागा पंथ में शामिल होने के लिए जरूरी जानकारी हासिल करने में छह साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही रहते हैं,
नागाओं की शिक्षा और ‍दीक्षा : नागा साधुओं को सबसे पहले ब्रह्मचारी बनने की शिक्षा दी जाती है। इस परीक्षा को पास करने के बाद महापुरुष दीक्षा होती है। बाद की परीक्षा खुद के यज्ञोपवीत और पिंडदान की होती है जिसे बिजवान कहा जाता है। अंतिम परीक्षा दिगम्बर और फिर श्रीदिगम्बर की होती है। दिगम्बर नागा एक लंगोटी धारण कर सकता है, लेकिन श्रीदिगम्बर को बिना कपड़े के रहना होता है। श्रीदिगम्बर नागा की इन्द्री तोड़ दी जाती है,
कहां रहते हैं नागा साधु : नाना साधु अखाड़े के आश्रम और मंदिरों में रहते हैं। कुछ तप के लिए हिमालय या ऊंचे पहाड़ों की गुफाओं में जीवन बिताते हैं। अखाड़े के आदेशानुसार यह पैदल भ्रमण भी करते हैं। इसी दौरान किसी गांव की मेर पर झोपड़ी बनाकर धुनी रमाते हैं।
नागा साधू बनने की प्रक्रिया
नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लम्बी होती है। नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग छह साल लगते हैं। इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूँ ही रहते हैं। कोई भी अखाड़ा अच्छी तरह जाँच-पड़ताल कर योग्य व्यक्ति को ही प्रवेश देता है। पहले उसे लम्बे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है। अन्तिम प्रक्रिया महाकुम्भ के दौरान होती है जिसमें उसका स्वयं का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार आदि शामिल होता है।
ऐसे होते हैं 17 श्रृंगार -शाही स्नान से पहले नागा साधु पूरी तरह सज-धज कर तैयार होते हैं और फिर अपने ईष्ट की प्रार्थना करते हैं। नागाओं के सत्रह श्रृंगार में  लंगोट, भभूत, चंदन, पैरों में लोहे या फिर चांदी का कड़ा, अंगूठी, पंचकेश, कमर में फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप, कुंडल, हाथों में चिमटा, डमरू या कमंडल, गुथी हुई जटाएं और तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, बदन में विभूति का लेप और बाहों पर रूद्राक्ष की माला 17 श्रृंगार में शामिल होते हैं।
नागा साधू सन्यासियों की इस परंपरा मे शामिल होना बड़ा कठिन होता है और अखाड़े किसी को आसानी से नागा रूप मे स्वीकार नहीं करते। वर्षो बकायदे परीक्षा ली जाती है जिसमे तप , ब्रहमचर्य , वैराग्य , ध्यान , सन्यास और धर्म का अनुसासन तथा निष्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं। फिर ये अपना श्रध्या , मुंडन और पिंडदान करते हैं तथा गुरु मंत्र लेकर सन्यास धर्म मे दीक्षित होते है इसके बाद इनका जीवन अखाड़ों , संत परम्पराओं और समाज के लिए समर्पित हो जाता है,
अपना श्रध्या कर देने का मतलब होता है सांसरिक जीवन से पूरी तरह विरक्त हो जाना , इंद्रियों मे नियंत्रण करना और हर प्रकार की कामना का अंत कर देना होता है कहते हैं की नागा जीवन एक इतर जीवन का साक्षात ब्यौरा है और निस्सारता , नश्वरता को समझ लेने की एक प्रकट झांकी है । नागा साधुओं के बारे मे ये भी कहा जाता है की वे पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं , कन्दराओं मे कठोर तप करते हैं । प्राच्य विद्या सोसाइटी के अनुसार “नागा साधुओं के अनेक विशिष्ट संस्कारों मे ये भी शामिल है की इनकी कामेन्द्रियन भंग कर दी जाती हैं”। इस प्रकार से शारीरिक रूप से तो सभी नागा साधू विरक्त हो जाते हैं लेकिन उनकी मानसिक अवस्था उनके अपने तप बल निर्भर करती है ।
विदेशी नागा साधू
सनातन धर्म योग, ध्यान और समाधि के कारण हमेशा विदेशियों को आकर्षित करता रहा है लेकिन अब बडी तेजी से विदेशी खासकर यूरोप की महिलाओं के बीच नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ता जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर चल रहे महाकुंभ मेले में विदेशी महिला नागा साधू आकर्षण के केन्द्र में हैं। यह जानते हुए भी कि नागा बनने के लिए कई कठिन प्रक्रिया और तपस्या से गुजरना होता है विदेशी महिलाओं ने इसे अपनाया है।
आमतौर पर अब तक नेपाल से साधू बनने वाली महिलाए ही नागा बनती थी। इसका कारण यह कि नेपाल में विधवाओं के फिर से विवाह को अच्छा नहीं माना जाता। ऐसा करने वाली महिलाओं को वहां का समाज भी अच्छी नजरों से भी नहीं देखता लिहाजा विधवा होने वाली नेपाली महिलाएं पहले तो साधू बनती थीं और बाद में नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया से जुड़ जाती थी।
कालांतर मे सन्यासियों के सबसे बड़े जूना आखाडे मे सन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र और शास्त्र दोनों मे पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान किया । उद्देश्य यह था की जो शास्त्र से न माने उन्हे शस्त्र से मनाया जाय । ये नग्ना अवस्था मे रहते थे , इन्हे त्रिशूल , भाला ,तलवार,मल्ल और छापा मार युद्ध मे प्रशिक्षिण दिया जाता है। इस तरह के भी उल्लेख मिलते हैं की औरंगजेब के खिलाफ युद्ध मे नागा लोगो ने शिवाजी का साथ दिया था 
जूना के अखाड़े के संतों द्वारा तीनों योगों- ध्यान योग , क्रिया योग , और मंत्र योग का पालन किया जाता है यही कारण है की नागा साधू हिमालय के ऊंचे शिखरों पर शून्य से काफी नीचे के तापमान पर भी जीवित रह लेते हैं, इनके जीवन का मूल मंत्र है आत्मनियंत्रण, चाहे वह भोजन मे हो या फिर विचारों मे ।
इन नागा साधुओ का दर्शन केवल कुम्भ - महाकुम्भ मेला या विशेष समय संयोग  मात्र में ही होता है। अन्य समय में इनका दर्शन दुर्लभ रहता है।


Sunday, 12 April 2020

क्या है सूर्य के राशी परिवर्तन का प्रभाव और महत्व? शिल्पा जैन 

आगरा। ओम साईं राम शिल्पा जैन सर्व मंगल के माध्यम से सूर्य के राशि परिवर्तन के बारे में बताने जा रहे हैं सूर्य का राशि परिवर्तन 13 तारीख की रात को 10:28 में करेंगे। सूर्य अपनी उच्च की राशि मेष में आ रहे हैं पुण्य काल 14 तारीख को माना जाएगा और 14 तारीख को ही सक्रांति मनाई जाएगी। उच्च का सूर्य 1 महीने तक अपनी उसकी राशि में रहेंगे। जून राशि वालों के लिए भी सूर्य की स्थिति अच्छी होगी उनकी मान-सम्मान में वृद्धि होगी धन संपदा में वृद्धि होगी राशि वालों के लिए अशुभ स्थिति में रहेंगे उनको अपमान का सामना और धन हानि की संभावना होती है।सूर्य के राशि परिवर्तन से सभी ज्योतिषियों को बहुत आशा है यह राशि परिवर्तन देश के लिए शुभ सुख कारी होगा कुछ राहत मिलने की संभावना है परंतु राहु का प्रकोप इस तरह पूरे देश में है अन्य जाति यानी पड़ोसी देश के कारण हमारे देश को बहुत संकट का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि राहु विदेश का भी कारक है स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं रहेगी सितंबर तक काफी भय बना रहेगा फिर भी आशा करते हैं कि यह सूर्य का राशि परिवर्तन कुछ शुभ संकेत लेकर आ रहा है कुछ राशि वालों के लिए यह राशि परिवर्तन शुभ और कुछ राशि वालों के लिए यह राशि परिवर्तन अशुभ रहेगा
मिथुन कर्क सिंह तुला धनु और कुंभ के लिए राशि परिवर्तन शुभ एवं  वृष कन्या वृश्चिक मकर और मीन राशियों के लिए यह अशुभ रहेगा वृश्चिक
और कन्या राशियों के लिए मिलाजुला असर दिखाई देगा
वृष राशि वालों के लिए सूर्य द्वादश में रहेंगे इसलिए परेशानियां बढ़ा सकते कई लोगों के नौकरी में स्थानांतरण के योग भी बनते नजर आ रहे हैं कुछ भी करने से पहले सोच समझकर विचार कर ले। 
मकर राशि के जातक के लिए सूर्य चतुर्थ स्थान पर होगा थोड़ी निराशा बढ़ेगी कार्यों में बाधाएं आ सकती हैं अपना सोच पॉजिटिव रखे
मीन राशि के लिए द्वितीय स्थान पर सूर्य विराजमान रहेंगे सामान्य फल की प्राप्ति होगी मेहनत ज्यादा करनी पड़ेगी धन का अपव्यय होने की संभावना है
इन राशि वालों को सूर्य देव की आराधना करनी चाहिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए एवं सूर्य भगवान को अर्घ देना चाहिए बाजरा गुड गेहूं का दान करना चाहिए
एक बात यहां स्पष्ट रूप से कहना चाहती हूं किसी भी राशि के लिए कोई भी ग्रह का गोचर शुभ है या अशुभ तभी फल देता है जब हमारे देश की स्थिति अच्छी होती है देश की कुंडली में ग्रह अच्छे गोचर कर रहे होते हैं अतः सूर्य का राशि परिवर्तन देश के लिए शुभ हो ऐसी ही कामना करती हूं
शिल्पा जैन
ज्योतिष विशारद
ज्योतिष धनवंतरी
ज्योतिष प्रज्ञा


Tuesday, 7 April 2020

लॉक डाउन : इस हनुमान जयंती घर पर करें ये सामान्य उपाय - शिल्पा जैन

जय श्रीराम - जय बजरंगबली
आज मैं शिल्पा जैन सर्वमंगल के माध्यम से हनुमान जयंती की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देती हूं। इस साल 2020 हनुमान जयंती 8 अप्रैल बुधवार वाले दिन मनाया जा रहा है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था इस दिन चैत्र पूर्णिमा होती है जो कि यह बहुत खास पूर्णिमा मानी जाती है आज ही के दिन माता अंजली की गोद में छोटे मारुति ने अवतार लिया था‌‌ पूर्णिमा तिथि 7 अप्रैल सुबह 10:47 बजे शुरू हो जाएगी जो 8 अप्रैल सुबह 8:20 समाप्त हो जाएगी लॉक डाउन के कारण बाहर जा कर पूजा करना एवं अपनी राशि के अनुसार पूजा करना मुश्किल हो जाएगा अतः मैं एक सामान्य उपाय बता रही हूं सबों के लिए कि ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का सुंदरकांड का पाठ करें इस दिन हनुमान जी को बेसन के लड्डू बनारसी पान एवं गेंदे के फूल का हार चढ़ाएं हनुमान जी के समक्ष तेल का दिया जलाना चाहिए हनुमान जी का जो तस्वीर है वह इस प्रकार रखें कि उनका चेहरा दक्षिण दिशा की तरफ हो जिनके घर में भी वास्तु का दोष है साउथवेस्ट के में हनुमान जी का पताका लगाएं आज के दिन जो बहुत लाभकारी होता है ऐसा माना जाता है कि आज के दिन रक्तदान करने से सभी दुर्घटना से हम बच सकते हैं क्योंकि वक्त जो है मंगल का प्रतीक है और मंगल ग्रह जो है हनुमान जी के अधीन है तो अतः कभी किसी कुंडली में अगर दुर्घटना योग बना हुआ हो तो ब्लड डोनेट करने का व सर्वोत्तम दिन माना जाता है इससे आने वाली दुर्घटना टल जाती है यूं तो हनुमान जी की पूजा हर मंगलवार और शनिवार को अवश्य करना चाहिए जिनके भी में कुंडली में शनि ग्रह कमजोर है शनि ग्रह अपना खराब फल दे रहे हैं या शनि की साढ़ेसाती या शनि की ढैया लगी हुई है उन्हें शनिवार को हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए और हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण का पाठ अवश्य करना चाहिए ऐसे तो हनुमान का नाम लेना ही सर्वथा सुख कारी होता है क्योंकि कलयुग में व उन्हें साक्षात माना जाता है क्योंकि उन्हेंअमरत्व का वरदान प्राप्त है किंतु इस दिन पूजा करना विशेष लाभदायक होता है हनुमान जी के 12 नाम की आराधना आज के दिन करनी चाहिए वह 12 नाम इस प्रकार है पहला ओम हनुमान दूसरा ॐ अंजनी पुत्र तीसरा ॐ वायु पुत्र चौथा होम महाबल पांचवा होम रमेश फागुन सखा सातवा पिता आठवां अमित विक्रम नोवा अतिक्रमण दसवा सीता शोक विनाशक
 11वां नाम लक्ष्मण प्राण दाता और और अंतिम नाम दश ग्रीन दर्पहा
आज के दिन इन सभी नामों का पाठ करना चाहिए हनुमान जी को सिंदूर अति प्रिय है इसके पीछे एक कथा प्रचलित है की माता सीता को सिंदूर लगाते देख हनुमान जी ने पूछा मां आप यह सिंदूर क्यों लगाती हैं तो माता सीता ने कहा कि मैं यह श्रीराम की लंबी आयु के लिए यह सिंदूर लगाती हूं अतः उन्होंने अपने पूरे शरीर में सिंदूर लगा लिया क्योंकि वह राम भक्त थे अपने भक्तों की सभा ग्य और आयु की वृद्धि के लिए उन्होंने ऐसा किया तो माता उनकी भक्ति से खुश होकर उन्हें अमरता का वरदान दिया इसीलिए हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाया जाता है हनुमान जी को चोला चढ़ाने से भी हनुमान जी बहुत प्रसन्न होते हैं चोला में एक लंगोट चमेली का तेल सिंदूर बेसन का लड्डू और गेंदे की फूल माला होनी चाहिए आज के दिन पांच देसी घी की रोटी का हनुमान जी को भोग लगाएं एवं गरीबों को खिलाएं इससे जिनको भी हर वक्त किसी न किसी प्रकार का भय लगा रहता हो या चारों तरफ नेगेटिव एनर्जी होती हो इससे वह दूर हो जाती है अपने स्वास्थ्य के लिए अपनी नाभि में हनुमान जी के सिंदूर का तिलक लगाएं सौभाग्य प्राप्ति के लिए या तिलक मस्तिष्क पर लगाएं और यश की प्राप्ति के लिए हनुमान जी के दाहिने पैर का सिंदूर लेकर राइट हैंड के रिंग फिंगर हथेली पर लगाएं निश्चित ही यह हनुमान जयंती आप सबके लिए सौभाग्य लेकर आएगा और इस कठिन समय में हनुमान जी की कृपा हम सब पर बनी रहेगी यही आशा करती हूं
शिल्पा जैन
ज्योतिष विशारद
ज्योतिष धनवंतरी
ज्योतिष प्रज्ञा


उमेश प्रताप सिंह और रवि अग्रवाल ने पेश की मानवता की मिसाल

सरताज आलम शोहरतगढ़़/सिद्धार्थनगर।           हैदराबाद के दर्शनार्थियों को विदा करते हुए           समाजसेवी उमेश प्रताप सिंह व अन्य लोग। हैदरा...