कोरोना नामक वैश्विक संकट की घड़ी में प्रत्येक मनुष्य नित नया संघर्ष कर रहा है। आज प्रकृति के सामने असहाय, बेबस मानव के सामने अनदेखे डर के साये में जीने के सिवाय कोई विकल्प भी तो नहीं। यह मानव की आदिम प्रकृति है कि वह सारे भौतिक मार्ग बंद होने पर ईश्वर की शरण में जाता है। आज भी यही हो रहा है। लोगों की दान, धर्म, कर्मकांडों आदि में रुचि बढ़ रही है। 'डूबते को तिनके का सहारा' की तर्ज पर लोग धर्म में राहत ढूँढ रहे हैं। कुछ लोग आक्रोश में भरकर धर्माचार्यों को कोस रहे हैं। पूछ रहे हैं कि कहाँ हैं शंकराचार्य? आपदा की घड़ी में क्या कर रहे हैं? अगर वाकई इनमें कोई शक्ति है तो ये इस आपदा को दूर क्यों नहीं करते? क्यों नहीं इस महामारी से जनता को बचाते? कुछ तो मठ मंदिरों और शंकराचार्यों की संपत्ति जब्त करने की माँग कर रहे हैं क्योंकि ये समाज के लिए अनुपयोगी है।
तर्कों में तो दम प्रतीत हो रहा है पर अगर विश्व की महामारियों के इतिहास पर नजर डालें तो ये प्रकृति की अनदेखी से उपजी हैं। मानव का मनमाना आचरण इसके मूल में है। भूकंप, सुनामी, बाढ़, सूखा और तमाम महामारियों के पीछे मानव का विज्ञान जनित अभिमान है।
धर्माचार्य तो सदियों से प्रकृति की शरण में रहने की बात कर रहे हैं और त्रय ताप से बचने के उपाय बता रहे हैं। वेदादि धर्मग्रंथ इन उपायों से भरे पड़े हैं। आज समय है कि भारतवासी न सही तो कम से कम सनातनी ही कुछ प्रश्न स्वयं से पूछें। क्या आज तक हमने शंकराचार्यों द्वारा दिखाये मार्ग का अनुसरण किया? क्या हमने कभी किसी शंकराचार्य का यथोचित सम्मान किया? क्या मनमाना आचरण करने से पहले हम शंकराचार्यों से पूछने गये थे, जो आज आपदा के समय उनका मुँह जोह रहे हैं? क्या कभी हमने अपने धर्मग्रंथों को पढ़ने का प्रयास किया? क्या कभी हमने अपने धर्मग्रंथों को श्रद्धा भाव से देखा? हम तो इन्हें पोंगापंथी का नाम देकर स्वयं को आधुनिक और शिक्षित दिखाने का ढोंग करते रहे। आज जब हम अपना ही बोया काट रहे हैं तो धर्म पर आक्षेप क्यों?
एक और हास्यास्पद तर्क कुछ तथाकथित बुद्धि के ठेकेदारों की ओर से रखा जा रहा है कि शंकराचार्यों सहित समस्त सनातनी धर्माचार्यों और सारे मठ मंदिरों की संपत्ति जब्त कर ली जाये और इस संपत्ति का उपयोग देशहित में किया जाय। तर्कशास्त्र के इतिहास में शायद ही कभी इससे ज्यादा दारुण माँग उठी हो। ये माँग उठाने वाले वे लोग हैं जो न तो कभी किसी मंदिर के लिए आस्थावान रहे, न ही उन्होंने कभी किसी मंदिर में दान किया। शंकराचार्यों का विरोध तो ये लोग जैसे अपना एकमात्र कर्त्तव्य समझते हैं। इन्हें एक बार इतिहास पर दृष्टि डाल लेनी चाहिए कि मंदिरों में स्थित विग्रहों को पाषाण मात्र मानकर उन्हें तोड़ने वालों का क्या हश्र हुआ? आज की आपदा, जिसके आगे मानवता और उसकी समस्त उन्नति विवश हो गई है, भी इसी का प्रतिफल है। विकास और विस्तार के नाम पर सिद्ध मंदिरों को हानि पहुँचाकर हमने विनाश को न्यौता दे दिया है। अब कहीं दैव के अधीन हो हमने संपत्ति जब्त करने जैसा कदम उठाया तो? परिणाम की कल्पना से ही सिहरन होने लगती है। वैसे जहाँ तक शंकराचार्यों की संपत्ति की बात है तो उनके दंड, कमंडल, वस्त्र और धर्मग्रंथ जब्त करने से मिले धन से कितनों का पेट भरेगा, ये तो सुझाव देने वाले जानें। पर हाँ, धर्माचार्यों की नजर अगर टेढ़ी हो गई तो बुद्धि के इन बाजीगरों के पापों का घड़ा अवश्य भर जायेगा। वास्तविकता तो यह है कि संन्यासियों और शंकराचार्यों के पास तो वैराग्य और आशीर्वाद के सिवा कोई संपत्ति ही नहीं और देश को आज इसी की आवश्यकता आ पड़ी है।
डा. दीपिका उपाध्याय, आगरा
हिन्दी दैनिक उमेश वाणी समाचार पत्र(सिद्धार्थ नगर उत्तर प्रदेश)
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Saturday, 11 April 2020
आपदा की घड़ी में धर्म पर आक्षेप क्यों?
Thursday, 9 April 2020
राजनाथ ने भेजी राहत सामग्री
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने के सहयोग से गोमतीनगर जनकल्याण महा समिति को भोजन सामग्री आटा, चावल, दाल प्राप्त हुई है जिसे गोमतीनगर में गरीबों, असहाय वृद्धों को अपनी उपखंड समितियों के माध्यम से वितरित किया जाना है। यह जानकारी महासचिव डॉ राघवेंद्र शुक्ला ने दी। उन्होने बताया कि उप खंड समितियों के पदाधिकारी अपने इलाकों में गरीबों को वितरण हेतु खाद्य सामग्री प्राप्त कर सकते है। राजनाथ सिंह के सहयोग से गरीबों को भोजन वितरण कार्य में तेजी आएगी।
धर्म पालन के लिए सामाजिक दूरी - गिरि
पतिव्रत धर्म के परिपालन में राम भक्त हनुमान के साथ सीता जी ने प्रभु राम के पास जाने से मना किया, स्वेच्छा से पर पुरुष का स्पर्श वर्जित है - रामायण
लेकिन वर्तमान युग में पर पुरुष से स्वेच्छा से हाथ मिलाना, गले मिलना या साथ घूमना फिरना कितना उचित है, जैसे पतिव्रता धर्म होता है वैसे ही पत्नीव्रता धर्म भी होता है, परिपालन स्त्री और पुरुष दोनों के द्वारा होना चाहिए तो देश में बढ़ते दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।
हो सकता इससे कुछ भाई वहीनो की स्वतंत्रता वाधित होगी तो इस सोच को रूढ़िवादी की संज्ञा भी मिलेगी लेकिन कुछ इस बात को समझेंगे भी, रामायण में अनेक विषमताओं में भी अपने धर्म की रक्षा करके धर्म का पालन किया समझने की आवश्यकता है ।रामायण में दर्शायी गयी मर्यादा से मनुष्य को सामाजिक एवम धार्मिक प्राणी होने की शिक्षा ही उसे इंसान बनाती है ।
धर्म युक्त सामाजिकता के परिपालन में हो रही चूकों के परिणाम देश में अनेक अपराध बढ़ गए हैं, समाधान स्वयं मर्यादित होकर लॉक डाउन का पालन करके सामाजिक दूरी बनाए रखने से ही संभव है।
राम निवास गिरि गोस्वामी
संस्थापक संरक्षक
विश्वगुरु शंकराचार्य दशनाम गोस्वामी समाज
मरकज़ से मरघट तक
मंजिल की तलाश में निकले थे घर से संजीवनी बूटी के लिए द्रोणगिरी पर्वत ही उठा लाए थे हनुमान जी. वो सतयुग की बात थी. अब जिंदगी और मौत के बीच की जंग जीतने के लिए बाल की खाल निकालने की बात है. वक्त बहुत कम है. इसलिए रायता फैलाने से अच्छा है कि घर बैठे और अपनों के साथ समय बिताएं. जब लड़ने के लिए महायोद्धा मैदान में है तब किस बात को -रोना. जिंदगी के लिए ही लौट रहे हैं घर को वो. वक्त की मार देखिए गांव वालों पर भारी पड़ गई परदेसियों की लापरवाहियां. रिसर्च की खता, इंसानियत सन्न. कैसी चली हवा, पड़ा दुनिया को-रोना. ना दवा ना दारू, बस सब दुआ के भरोसे. जब इत्तेफाक पुनरावृत्ति में परिवर्तित होने लगे, तब डर और दहशत का वातावरण बनने देर ही कितनी लगी है. वुहान में उपजा, मरकज़ से फैला. हर ओर सिर्फ कोरोना ही कोरोना. मास्क, सेनेटाइजर, आइसोलेशन, जमाती और सोशल डिस्टेटिंग के बीच लॉकडाउन. शायद यही प्रकृति का बदला था इंसान से. जब अपनी परछाई से डर लगता हो, तब कौन अपना-कौन पराया. कोरोना को हराने के लिए उपाय भी ऐसा कि घर में कैद होना है. कोई फाइटिंग नहीं, सिर्फ इंतजार कोरोना की खुदकुशी का. मनमर्जी जिंदगी पर भारी पड़ती है, अब दिल कोप भवन में जाता है तो जाने दो. यूं भी कोरोना को हराने के लिए दिमाग ही काफी है. सलाम इंडियन पुलिस, मेडिकल स्टाफ, फोटो जर्नलिस्ट और सफाई कर्मी इनके जज्बे को यूं समझिए कि अंगारों पर नंगे पांव चलना, क्योंकि इंसानियत को कोरोना से बचाना है. कोरोना की दहशत में जहां हॉस्पिटल सुने पड़े है वहीं मरघट में सन्नाटा पसरा पड़ा है. अब इसको कोरोना की दहशत कहिए या प्रदूषण मुक्त प्रकृति की मेहरबानियां. क्या से क्या हो गया नजदीकियां बनाते-बनाते दूरियां बनाना जरूरी हो गया जिंदा रहने के लिए. जीत जाएंगे हम तुम अगर दूर हो. बस दुआ कीजिए कि कोरोना के साए में मरकज़ से निकले जमातियों की फौज से मरघट का सन्नाटा न टूट पाएं.
संजीवनी बूटी के लिए द्रोणगिरी पर्वत ही उठा लाए थे हनुमान जी. वो सतयुग की बात थी. अब जिंदगी और मौत के बीच की जंग जीतने के लिए बाल की खाल निकालने की बात है. वक्त बहुत कम है. इसलिए रायता फैलाने से अच्छा है कि घर बैठे और अपनों के साथ समय बिताएं. जब लड़ने के लिए महायोद्धा मैदान में है तब किस बात को -रोना.
-हरीश भट्ट
कुछ ना समझ लोग है जो लॉकडाउन का पालन नहीं कर रहे
सबसे बड़ी चिंता का विषय है कि कुछ लोगों को अब भी समझ नहीं आ रहा है कि बाहर निकलना हमारे लिए हमारे परिवार के लिए कितना खतरनाक हो सकता है। अभी के हालात देखकर भी नहीं समझ रहे हैं कि बाहर निकलकर हम अपना बचाव तो कर ही नहीं रहे बल्कि अपने परिवार के साथ देश के साथ भी अच्छा नहीं कर रहे हैं। बस कुछ दिनों की बात है थोड़ा सा इसकी गम्भीरता को समझिए। आप सबके साथ की इस समय बहुत जरूरत है। और उन लोगों का शुक्रिया भी जो बहुत ही अच्छा प्रयास कर रहे हैं। घर में रह रहे हैं। और कोई भ्रम नहीं फैला रहे हैं अपने परिवार के लिए अपने देश के लिए घर में रहकर साथ दे रहे हैं । खुशियों का कोई रास्ता नहीं होता केवल खुश रहना ही एकमात्र रास्ता है इसलिये हमें हर हाल में खुश रहना है चाहे जो भी हो । हमें खुश रहना है अपने परिवार और देश के लिए। ईश्वर पर विश्वास रखें अटूट विश्वास को डगमगाने मत देना जो होगा अच्छा ही होगा। कृपया लोकडाउन तक घर पर ही रहें सुरक्षित रहें स्वस्थ रहें सतर्क रहें। क्योंकि जान है तो जहान है।
जय हिंद जय भारत ।।।।।।।।।।।।।।।।
अनीता श्रीवास्तव
आगरा
Wednesday, 8 April 2020
आगे बढ़ा सेनेटाइजेशन अभियान
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोरोना की आहट के साथ ही आपदा प्रबंधन का मोर्चा संभाल लिया था। वह लगातार उच्च अधिकारियों,मीडिया, जनप्रतिनिधयों,जिलाधिकारियों,धर्म गुरुओं, ग्राम प्रधानों आदि से वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से संवाद कर रहे थे। उनके सरकारी आवास में शीर्ष अधिकारियों की बैठक के तो प्रतिदिन कई दौर होते है। इसके अलावा योगी अस्पतालों व कम्युनिटी किचेन के निरीक्षण हेतु भी गए थे। वह पूरे समर्पण के साथ अपने दायित्व का निर्वाह कर रहे है। इसी क्रम में मुख्यमंत्री के सरकारी आवास के समक्ष कोरोना संबन्धी नियमों का पालन करते हुए जनहित संबन्धी संक्षिप्त कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसके माध्यम से योगी आदित्यनाथ ने यह भी सन्देश दिया कि प्रदेश को कोरोना से बचाने के लिए वह पुरजोर प्रयास कर रहे है। कालिदास मार्ग पर उंन्होने अग्निशमन विभाग के छप्पन फायर टेण्डर्स का लोकार्पण किया। यह फायर टेण्डर इस समय सेनेटाइजेशन के साथ ही अग्निशमन कार्यों को अंजाम देंगे। योगी ने यहासन अग्निशमन व सेनिटाइजेशन उपकरणों का भी निरीक्षण किया।
इस समय पंचायत व नगर निकाय संस्थाओं द्वारा सेनिटाइजेशन के कार्य कराए जा रहे हैं। योगी ने कहा कि फायर ब्रिगेड की गाड़ियों का उपयोग कर प्रत्येक गांव व शहर को समयबद्ध ढंग से विषाणु मुक्त करने की कार्यवाही विगत एक सप्ताह से चल रही है। इस कार्यवाही को और सुदृढ़ करने के लिए आज अत्याधुनिक उपकरणों से युक्त छप्पन गाड़ियां भी इससे जुड़ रही हैं। इस अवसर पर योगी ने कहा कि प्रदेश की लगभग साढ़े तीन सौ तहसीलों में से आधे में फायर टेण्डर की व्यवस्था नहीं थी। विगत तीन वर्षों में राज्य सरकार ने चरणबद्ध ढंग से तहसीलों में फायर टेण्डर्स की व्यवस्था की है। वर्तमान में बची हुई लगभग एक सौ तीस तहसीलों में से छप्पन तहसीलों में फायर टेण्डर की व्यवस्था करायी गई है। शासन द्वारा प्रदान की गई तीस करोड़ रुपए की धनराशि में से बीस करोड़ रुपए की धनराशि से छियानबे गाड़ियां व दस करोड़ रुपए की धनराशि से अत्याधुनिक उपकरण खरीदे गए हैं। प्रथम चरण छप्पन गाड़ियों को विभिन्न जनपदों में रवाना किया गया है। यह गाड़ियां हाईप्रेशर पम्प से सुसज्जित हैं। सभी जनपदों में फायर ब्रिगेड की गाड़ियों द्वारा सोडियम हाइपोक्लोरस साल्यूशन का छिड़काव किया जा रहा है।
बाधाओं का मुकाबला कर रहे है योगी
आपदा में पीड़ितों को राहत देना मुश्किल होता है। इसके लिए स्वयं कष्ट उठाना पड़ता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ,उनकी पूरी सहयोगी टीम,डॉक्टर,नर्स,पुलिस,और अनेक सामाजिक संस्थान यह कार्य कर रही है। यह सभी लोग स्वयं जोखिम उठाकर जरूरतमंदों की सहायता कर रहे है। इसके विपरीत आपदा को बढ़ाना,दूसरों के कष्ट बढ़ाना बहुत आसान होता है। तब्लीगी जमात ने यह कर दिखाया। उनकी वजह से पन्द्रह जिले पूरी तरह सील करने की नौबत आई है। जबकि योगी आदित्यनाथ कोरोना को पराजित करने की दिशा में सफलता को ओर बढ़ रहे थे। वह चौदह अप्रैल को लॉक डाउन हटाने पर उंन्होने विचार भी शुरू कर दिया था। इसके लिए उन्होंने जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों से वार्ता भी की थी। योजना थी कि लॉक डाउन हटने के बाद लोग एकदम सड़कों पर न निकलें,इससे समस्या बढ़ेगी। लेकिन सफलता की इस राह में जमात अवरोधक बन गया।
इसमें कोई संदेह नहीं कि योगी आदित्यनाथ ने कोरोना आपदा के मद्देनजर प्रभावी कार्ययोजना पर अमल किया। इसकी प्रशंसा राष्ट्रीय स्तर पर हुई है। उन्होने इस पूरी अवधि में अपनी कोई चिंता नहीं की,जोखिम उठाते हुए वह दिनरात कार्य करते है। उन्होने कोरोना के इलाज और बचाव दोनों मोर्चों पर यद्ध स्तर का प्रबंधन किया। इसके सकारात्मक परिणाम दिखाई देने लगा था।
योगी ने इसके लिए चिंता भी जाहिर की थी। लेकिन उनके आतविश्वास में कोई कमी नहीं थी।उन्होने गत दिवस बताया था कि प्रदेश में तीन सौ चौदह कोरोना पाॅजिटिव केस हैं, जिनमें से एक सौ अड़सठ केसेज तब्लीगी जमात के हैं। इनकी वजह से पिछले चार दिनों में प्रदेश में कोरोना पाॅजिटिव केसों की संख्या बढ़ी है। तब्लीगी जमात से उत्तर प्रदेश लौटने वालों का लगातार पता लगाकर उन्हें क्वाॅरण्टीन किया जा रहा है। राज्य सरकार सबकी सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए निरन्तर सजग होकर कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में पच्चीस कोरोना पाॅजिटिव लोग स्वस्थ भी हुए हैं।
प्रदेश के पन्द्रह जिले पूरी तरह सील किये गए है।।लखनऊ, शामली, मेरठ, वाराणसी,सीतापुर, आगरा, ग़ज़ियाबाद, बुलन्दशहर, कानपुर, गौतमबुद्धनगर, सहारनपुर, बरेली, फ़िरोज़ाबाद, बस्ती, महराजगंज की स्थिति को देखते हुए इन्हें सील किया गया है। मीडिया को भी उन कुछ हिस्सों में नही जाने दिया जायेगा जहॉ कोरोना पॉज़िटिव है। अति आवश्यक सेवाओं के कुछ पास छोड़कर सारे मूवमेंट एकदम किये बन्द किये गए है। लॉक डाउन का अब पूरी तरह कड़ाई से पालन कड़ाई से पालन होगा। अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने कहा कि पंद्रह ज़िलों के हॉट स्पॉट को सील किया गया है। लोगों हर हालत में बाहर निकलने से रोका जायेगा। यह पंद्रह अप्रैल तक के लिये किया जा रहा है।
Tuesday, 7 April 2020
आपदा प्रबंधन की प्रभावी कमान
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजधानी से लेकर सम्पूर्ण प्रदेश में कोरोना आपदा प्रबंधन तंत्र की स्थापना पहले ही कर दी थी। इसमें शीर्ष प्रसासनिक व पुलिस अधिकारियों से लेकर जनपद व गांव तक सरकारी मशीनरी को सक्रिय किया गया था। सभी स्तर पर जिम्मेदारी व जबाबदेही का भी निर्धारण कर दिया गया थी। योगी आदित्यनाथ स्वयं इसकी सतत निगरानी कर रहे है। इस व्यवस्था को अधिक प्रभावी व व्यवस्थित बनाने के उद्देश्य से लखनऊ एनेक्सी भवन में राहत आयुक्त कार्यालय में स्थापित एकीकृत आपदा नियंत्रण केन्द्र का योगी ने लोकार्पण किया गया। एकीकृत आपदा नियंत्रण केन्द्र में राहत टोल फ्री नं दस सत्तर स्थापित किया गया है, जिसमें बारह वर्क स्टेशन कार्यरत हैं। इस नियंत्रण कक्ष शुरुआत उम्मीद से अधिक सफल रही है। इसके माध्यम से बड़ी संख्या में आमजन की समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। यह केन्द्र राज्य स्तरीय सभी सम्बंधित विभागों के साथ जुड़कर कार्य कर रहा है। इसके माध्यम से आपदा प्रबंधन संबन्धी सूचनाएं एकीकृत रूप से प्राप्त करना संभव हुआ है। यह केन्द्र प्रदेश के समस्त डिस्ट्रिक्ट कण्ट्रोल रूम से भी वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त इसे प्रदेश के अन्य महत्वपूर्ण सेवाओं को भी जोड़ा जा रहा है। योगी आदित्यनाथ ने आपदा की स्थिति में कन्ट्रोल रूम को बहुत महत्वपूर्ण बताया है। इसके दृष्टिगत सभी जिलाधिकारी अपने जनपदों के कन्ट्रोल रूम में एक जिम्मेदार नोडल अधिकारी की नियुक्ति कर चैबीसो को घंटे इसका संचालन सुनिश्चित कराएंगे। इसके माध्यम से राहत कार्यक्रम में तेजी आएगी। आमजन तक क्वारन्टीन वाॅर्ड, इन्स्टीट्यूशनल क्वारन्टीन,आइसोलेशन वाॅर्ड, लेवल वन लेवल टू लेवल थ्री के कोविड अस्पतालों की जानकारी तथा जरूरतमंदों तक फूड पैकेट आदि पहुंचाने में कन्ट्रोल रूम का बेहतर ढंग से उपयोग किया जाएगा। बिना किसी भेदभाव के हर जरूरतमंद तक आवश्यक सुविधाएं व शासन की योजनाओं का लाभ पहुंचाने में कन्ट्रोल रूम की बड़ी भूमिका है। न्यूनतम समय में एकीकृत कन्ट्रोल रूम के माध्यम से प्रदेश के सभी जनपदों को जोड़ दिया गया है।
आपदा की अन्य स्थितियों में भी जरूरतमंद व्यक्तियों को त्वरित गति से सहायता पहुंचायी जा सकेगी। प्रत्येक सूचना का संकलन व सभी समस्याओं का समाधान भी सुनिश्चित कराया जाएगा।
राष्ट्रीय एकता प्रकाश से परहेज
प्रजातंत्र में विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। लेकिन इसका नीति आधारित होना अपरिहार्य होता है। इसके अभाव में यह प्रभावी नहीं होता। कई बार तो इस प्रकार के विरोध से विपक्ष का अपना ही नुकसान होता है। उंसकी छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जबकि वह जिसका विरोध करते है,वह अपरोक्ष रूप से लाभान्वित हो जाता है। मात्र दो हफ्ते के बीच ऐसे दो उदाहरण देखे गए। विपक्ष ने प्रधानमंत्री के आह्वान पर हमला बोला। नरेंद्र मोदी ने पहले पांच मिनट तक ताली थाली बजाकर कोरोना सेवकों के आभार व्यक्त करने की अपील की थी। इसके बाद उन्होंने नौ मिनट तक राष्ट्रीय एकजुटता के प्रदर्शन हेतु दीप आदि प्रज्वलित करने का आह्वान किया। मोदी की इन दोनों अपीलों पर विपक्ष के दिग्गजों ने खूब तंज वाण चलाये।
इन सभी नेताओं को अपने इस विरोध पर आत्मचिंतन करना चाहिए। इसलिए नहीं कि सत्तापक्ष के नेताओं ने क्या जबाब दिया। इस सब को मात्र राजनीति समझ कर नजरअंदाज किया जा सकता है,लेकिन यहां विषय जनमानस का है।
दोनों ही अवसरों पर जबरदस्त जन उत्साह का जबरदस्त प्रदर्शन हुआ। विपक्षी नेताओं को इसी पर विचार करना चाहिए। क्या वह इस जनभावना को समझने में विफल रहे,क्या उनकी राजनीति में इस स्तर तक विचार करने का माद्दा नहीं है,क्या वह वह नरेंद्र मोदी के प्रत्येक कदम की निंदा करने का संकल्प ले चुके है, क्या राष्ट्रीय सहमति के विषय भी उनके लिए कोई महत्व नहीं रखते। कोरोना से मुकाबले में सरकार के कार्यों की आलोचना हो सकती थी, सरकार ने जो आर्थिक पैकेज दिया, उसको कम बताकर बढ़ाने की मांग हो सकती थी, कई अन्य मुद्दों पर भी आलोचना हो सकती थी।
लेकिन पांच मिनट ताली थाली बजाने में भी विपक्ष को आपत्ति थी। क्या विपक्ष को इसके पीछे छिपी भावना को नहीं समझना चाहिए था। इसके माध्यम से उन कर्मवीरों के प्रति आभार व्यक्त करना था। नरेंद्र मोदी की इस बात को विश्व के कई देशों का समर्थन मिला। उन्होने अपने यहां भी आभार व्यक्त करने का यह तरीका अपनाया। जो बात विश्व समझ गया, उससे भारत के विपक्षी नेता उदासीन बने रहे। विपक्ष के नेता केवल एक बार अपने को डॉक्टर,नर्स सुरक्षा कर्मियों की जगह रख कर सोचते तो वह भी मोदी के आग्रह पर अमल करते। इस तथ्य को भारतीय जनमानस समझ गया। लेकिन विपक्ष के नेता जनभावना से विमुख बने रहे।
वह ताली थाली पर जन उत्साह को देखकर सबक ले सकते थे। लेकिन नरेंद्र मोदी से पूर्वाग्रह का क्या करते। इसी प्रकार दिया, मोमबत्ती आदि को एक समय प्रज्ववलित करने के पीछे भी बड़ा विचार छिपा था। कोरोना का मुकाबला सम्मलित प्रयास से ही हो सकता है। इसमें सबका योगदान होना चाहिए। दीप,मोमबत्ती, टार्च से यही सन्देश प्रसारित होता। भारत का जनसामान्य इसे समझ गया। उसने इसमें पूरा उत्साह दिखाया। विश्व के कई देशों ने मोदी के इस आग्रह पर अमल किया। लेकिन भारत का विपक्ष इस जन उत्साह से विमुख बना रहा। इतना ही कई नेता ऐलान कर रहे थे कि वह दीपक मोमबत्ती आदि कुछ नहीं जलाएंगे।
ऐसा भी नहीं कि यह चर्चा पहली बार हो रही है। लोकसभा चुनाव के बाद जयराम रमेश जैसे कुछ नेताओं ने कांग्रेस हाईकमान को पत्र लिखा था। इसमें कहा गया था कि सकारात्मक विरुद्ध तो उचित है। लेकिन नरेंद्र मोदी पर निजी तौर पर या नकारात्मक हमलों का कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा। यही कारण है कि कांग्रेस उनका मुकाबला नहीं कर सकी।
जयराम रमेश की भांति दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी कुछ वर्ष पहले सवाल उठाए थे। उंन्होने कहा था कि विरोध के लिए परिपक्व होना आवश्यक होता है। अन्यथा विपक्ष अपने अपने दायित्वों को उचित निर्वाह नहीं कर सकता।
चुनाव में हार जीत लगी रहती है, लेकिन नेतृत्व का परिपक्व होना ज्यादा महत्वपूर्ण है। राजनीतिक दलों को समझना चाहिए कि प्रजातंत्र में विपक्ष की भूमिका भी कम नहीं होती,भले ही उसकी संख्या कम हो। ऐसा होने पर जनहित के मुद्दों पर वह सत्तापक्ष की नाक में दम कर सकता है लेकिन इसके लिए पूर्वाग्रह से मुक्त होना आवश्यक है। लेकिन यहां तो विपक्ष का नरेन्द्र मोदी के से पूर्वाग्रह अधिक प्रकट होता है।
ऐसा लगता है कि ये लोग नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं कर सके हैं। यही स्थिति तब थी जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। दूसरा विपक्ष को लगता है कि लगातार मोदी पर हमला बोलने से उनकी पार्टी का ग्राफ बढ़ जाएगा। इसी के तहत मोदी के सूट कपड़ों से लेकर विदेश यात्रा तक प्रत्येक विषय पर हमला बोला गया। राफेल पर अपशब्दों का प्रयोग किया गया। उन्हें कुछ उद्योगपतियों का दोस्त व गरीबों का विरोधी बताया गया। लेकिन इसके बाद भी जनमानस में विपक्ष के इन नेताओं की छवि नहीं सुधरी। न इन्होंने अपने कार्यो से कोई सबक लिया। इनके विरोध को दरकिनार कर आमजन ने नरेंद्र मोदी के आग्रह पर उत्साह के साथ अमल किया। विपक्ष के दिग्गजों को इस पर आत्मचिन्तन करना चाहिए।
लाॅकडाउन के बाद: करदाता को संरक्षण दे और प्रोत्साहित करे सरकार : पराग सिंहल
आपने मेरा पिछला लेख ‘व्यापारीः तेरा दर्द न सकझे कोई’ पढ़ा और बहुत से मित्रों ने पसंद किया। पिछले 25 मार्च से कोरोना संक्रमण महामारी के प्रकोप को देखते हुए देश में सम्पूर्ण लाॅकडाउन लागू चल रहा है। केन्द्र सरकार ने केवल लाॅकडाउन को ही लागू नहीं किया बल्कि इस लाॅकडाउन के दौरान आम जनता की परेशानियों को देखते हुए संगठित एवं असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों, किसानों, गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले जनता, उज्जवला गैस योजना और जनधन खाता धारकों के लाभार्थियों के लिए 1.70 लाख करोड़ का राहत पैकेज की घोषणा की, स्वागत योग्य है। इसके साथ सरकारी विभाग के कर्मचारियों की वेतन आदि का भुगतान भी समय से करने की व्यवस्था की।
उपरोक्त लेख में मैंने यह भी संभावना व्यक्त की थी कि इस लाॅकडाउन के दौरान सरकार ने सभी वर्गाे को राहत प्रदान करने के लिए योजना लागू कर दी। एक राष्ट्रीय स्तर की संस्था ‘एसोसिएशन आॅफ टैैक्स पेयर्स एंड प्रोफेशनल्स’ और ‘कर जानकारी ;पाक्षिक पत्रिकाद्ध’ ने सरकार का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया है। देश में केवल यही वर्ग ही नहीं हैं जो इस लाॅकडाउन के दौरान भूखमरी और परेशानी के दौरान से गुजरेगा या अर्थ संकट का सामना करेगा। इस अध्ययन कितना हुआ है या हो रहा है?
इस लाॅकडाउन के दौरान और बाद में देश की अर्थव्यवस्था पर बड़ा आघात जा रहा है, जिसके लिए संभवतः सरकार चिंचित है और राहत प्रदान की। दुःखद यह भी है कि सरकार ने अभी तक व्यापार जगत को केवल जीएसटी और उसके अन्तर्गत दाखिल होने वाले मासिक एवं त्रैमासिक रिटर्न को समयसीमा की वृ(ि और रिटर्न दाखिल करने की छूट के साथ लगने वाले ब्याज में छूट प्रदान करने की घोषणा करने के बाद मान लिया कि सरकार ने उद्योगों को राहत प्रदान कर उपकार कर दिया।
;दिनांक 6 अप्रैलद्ध के एक समाचार पत्र में समाचार ‘उद्योगों को नहीं होगी फंड की कमी.. बैंक दे रहे बिना शुल्क कम ब्याज र कर्ज’ प्रकाशित हुआ कि इस समाचार में बताया गया है कि स्टेट बैंक ने सीईसीएल नाम से अतिरिक्त नकदी सुविधा के तहत 200 करोड़ रुपये तक का कर्ज उद्योगों को दिया जा सकता है। इस समाचार से कोई संदेह नहीं कि इस सुविधा से एमएसएमई सेक्टर के स्माॅल एवं मीडियम सेक्टर के उद्योगों को राहत मिलने की पूरी संभावना है परन्तु प्रश्न उठ खड़ा हो रहा है ऐसे सूक्ष्म अथवा माइक्रो स्तर के व्यापारियों ;दुकानदारोंद्ध को, जो एमएसएमई सेक्टर में शामिल नहीं हो पाते हैं, किसी योजना का हिससा बनने की स्थिति में नहीं हो पाते या सरकार की योजनाओं में ऐसे स्तर के व्यापारी-दुकानदार वर्ग शामिल नहीं है? तो यह वर्ग कैसे स्वयं के अस्तित्व को बचायें?
देश में लागू लाॅकडाउन खुलने के बाद बाजार में नगदी की स्थिति, और छोटे स्तर के घरेलू और कुटीर उद्योगों की स्थिति का पुनः आंकलन करने का प्रयास करना ही होगा परन्तु सरकार के सामने समस्या यह भी है कि वह देश में कोरोना संक्रमण मरीज मिलने वालों की संख्या को नियंत्रण करने के लिए लाकडाउन को लागू रखती है तो स्थानीय बाजार चैपट हो जाएगा। तो क्या करे सरकार ! लाॅकडाउन लागू रखे या खोल दे । दोनों की स्थिति घातक होती जा रही है। क्योंकि लाॅकडाउन के चलते छोटे व माइक्रो स्तर के दुकानदारों की ही नहीं बल्कि देश के टैक्स अधिवक्ताओं के सामने भी ऐसा हीं संकट खड़ा होता जा रहा है।
उधर विभिन्न राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे की रिपोर्ट सामने आ रही हैं कि लाॅकडाउन के कारण बंद उद्योगों से देश के बैंक के सामने एनपीए का संकट बढ़ेगा। लेकिन इन सर्वे में छोटे दुकानदार, सेमी एवं माइक्रो दुकानदार, व्यापारीवर्ग के बारे में कोई उल्लेख नहीं हो रहा है। इतना ही यदि आप पिछले 10 वर्षो में प्रकाशित रिपोर्टो का अध्ययन करेंगे तो ऐसे छोटे और स्थानीय व्यापारवर्ग पर कोई अध्यन रिपोर्ट नहीं आती है। हां राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न संगठन देश के बड़े और भारी उद्योगों के बारे में ही चिंतन करते हैं और विकास पर अध्ययन करते हैं, यह आरोप नहीं है बल्कि सत्य है, ऐसे कुटीर और स्थानीय दुकानदार व्यापारी वर्ग देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
हमको यहां पर दो वर्गो का विश्लेषण करना होगा। पहला कुटीर उद्योग, छोटे दुकान और फैक्टरी के सामने आर्थिक संकट के साथ उत्पादन, कच्चा माल का संग्रह और बैंक )ण और ब्याज की देनदारी की चिंता बढ़ रही है, जैसा कि सरकार ने 3 माह के लिए बैंक )णों की वसूली रोक दी है परन्तु 3 माह बाद बैंक लोन किस्त के साथ 3 माह के ब्याज की वसूली चालू हो जाएगी। उस लाॅक डाउन के दौरान कार्यरत कर्मचारियों के वेतन एवं भत्तों का भुगतान, फैक्टरी, दुकान किराया, बिजली बिल आदि खर्च की चिंता सताने लगी है। फिर बाजार के देनदारी का भुगतान जैसे आर्थिक संकट सामने खड़े होंगे। इसके साथ वाणिज्य कर ;वैटद्ध कर निर्धारण वर्ष 2016-17 का कर निर्धारण और टैक्स की अदायगी जैसे संकट भी मुंह फाड़े खंडे़ होंगे। और परिवार पालन की स्थिति भी खराब होगी कि बच्चों की फीस का भुगतान, बच्चों के नये सत्र के किताब-कापी की व्यवस्था आदि पर चिंता का विषय होगा। वैसे भी सरकार जीएसटी के अन्तर्गत 5 करोड़ रुपये तक के वार्षिक टर्नओवर वाले पंजीकृत डीलर को छोटा व्यापारी मानती आ रही है, लेकिन....
उधर टैक्स अधिवक्तावर्ग,जो कि नये प्रेक्टिस में आये हैं, जिनके पास समुचित कार्य नहीं है, क्या यह संभव होगा कि लाॅक डाउन खुलते ही उनके क्लाइंट व्यापारी उनको फीस का भुगतान करने में सक्षम होगा? ऐसे में यह टैक्स अधिवक्ता अपना परिवार का भरण पोषण कैसे करे, यह गंभीर चिंता का विषय है।
ऐसी सभी भीषण के चलते परिस्थिति में सरकार प्रत्येक वर्ग का उनकी जरुरत का ध्यान रखना भी दायित्व बन जाता है। प्रत्येक वर्ग को राहत देना जरुरी हो जाता है। हमारे देश में एक परंपरा बन चुकी है कि प्रत्येक राजनीतिक पार्टी और दल के साथ सरकार को व्यापारी वर्ग और अधिवक्ता जैसे वर्ग को कभी भी सरकारी योजनाओं और राहत का लाभ का भागीदार नहीं बनाया जाता है। मेरा मानन है कि ऐसी लम्बे लाॅक डाउन के दौरान और बाद में सभी स्तर के व्यापार, दुकानदार और उद्योगों की कमर टूटी जाएगी।
ऐसी स्थिति में सरकार पुनः विचार करना होगा कि बैंक की कर्ज वसूली का सरल बनाये, सरकारी विभागों की देनदारियों की वसूली भी सरल बनाये, ब्याज की अधिक से अधिक माफी हो। और सभी ऐसे वर्ग जिससे सरकार को टैक्स के रुप में राजस्व देने वाला वर्ग को संरक्षण प्रदान करें, वर्तग्मान परिस्थितियों से निबटने के लिए करदाता वर्ग को प्रोत्साहित किया जाए कि कैसे वह पुनः कार्य धन्धा स्थापित करे और टैक्स के रुप में सरकार को राजस्व प्रदान करें। ऐसी परिस्थिति में आचार्य चाणक्य की युक्ति चरितार्थ हो जाती है कि ‘फूलों से उतना ही रस चूसों, जिससे फूल भी मुरझाये और रस भी पूरा मिलता रहे’।
पराग सिंहल प्रबंध संपादक
कर जानकारी ;पाक्षिकद्ध, आगरा
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